मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुए थोकबंद 28 विधानसभा उपचुनावों के नतीजे आ चुके हैं. जैसा कि पिछले दरवाजे से वल्लभ भवन में घुसे शिवराज सिंह चौहान और उनकी चौकड़ी चाहती थी, वैसा ही 66 लाख पात्र मतदाताओं ने कर दिखाया है. बीजेपी अब चैन की नींद सो सकती है कि वो अपने दम पर ही राज्य सरकार चला सकेगी.

75 से भी ज्यादा चुनावी सभाओं में शिवराज जी कभी माइक पकड़कर, कभी माथा टेककर और कभी कोई अन्य स्वांग भरकर लोगों से गुहार लगाते रहे कि अगर उन्होंने पार्टी प्रत्याशियों को नहीं जिताया, तो चौथी बार मुख्यमंत्री पद पर कायम नहीं रह पाएंगे. लगता है कि मतदाता उनके भावुक भाषणों में बह गए और लगभग 70 प्रतिशत सीटें उनकी झोली में डालकर अपना कार्य कर दिया. ऐसा प्रतीत होता है कि प्राय: हर मतदाता के मन में ये बात भी घर कर गई थी कि तमाम उठापटक के बावजूद बीजेपी सरकार में तो रहेगी ही और केंद्र में भी उसीकी सरकार है, सो कोरोना संक्रमण की परवाह ना कर अधिक संख्या में मतदाताओं ने कमल के फूल वाले बटन को ही पसंद किया.

उधर, ज्योतिरादित्य सिंधिया अलग ही राग अलापते दिखे. सिंधिया ने जब पार्टी बदली, तो 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी. उप चुनाव में कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के उन्नीस में से 13 लोगों ने जीत दर्ज की हैं. शिवराज गुट के 9 में से तीन हारे तो वहीं छह जीते. शिवराज की सरकार को तो 229 की मौजूदा क्षमता में बहुमत के लिए 115 चाहिए थे. सिंधिया गुट को छोड़ भाजपा अब 107+6=113 हो गई है. उसे 2 की ही जरूरत होगी. अन्य सात में से एक निर्दलीय और बसपा के दो विधायक भाजपा के पक्ष में हैं, फिर भी सरकार सिंधिया गुट के बिना कम्फर्ट में नहीं रहेगी.

जनता ने सौ साल पुराना गद्दारी का आरोप खारिज कर दिया

हैरानी इस बात की है कि, कांग्रेस अपने दो दशक के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया पर डेढ़ सौ साल पुरानी गद्दारी का आरोप लगाते रहे लेकिन जनता ने उसे खारिज कर दिया, वहीं सिंधिया अपने शहर की तीन में से दो सीटें नहीं जीत पाए. लेकिन कुल जमा सिंधिया कमलनाथ या दिग्विजय सिंह के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हुए. वहीं दिग्विजय इस महा उपचुनाव में पर्दे के पीछे थे और कमलनाथ फ्रंट पर लेकिन जनता ने दोनों को खारिज कर दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस कार्यकार्ताओं में इतनी एकजुटता नहीं है, कि वे आपने इन दो असफल नेताओं को वानप्रस्थ जाने के लिए विवश कर दें. यही वजह है कि सिंधिया का कद भाजपा में बढ़ गया है. अब अगले विस्तार में सिंधिया को केंद्र में मंत्री पद मिलने की संभावना भी बढ़ गई है. भाजपा सिंधिया के चेहरे का इस्तेमाल अन्य राज्यों में कर सकती है, क्योंकि मप्र में सरकार बनाकर चुनाव जीतने वाला फाॅर्मूला कामयाब हो गया है. इसका पहला असर राजस्थान में हो सकता है.

सरकार सेफ लेकिन कैबिनेट का विस्तार अगली चुनौती

शिवराज सिंह चौहान सरकार को बहुमत हासिल हो गया है, लेकिन शिवराज के सामने चुनाैतियां कम नहीं है. सबसे पहले चुनौती होगी कैबिनेट का विस्तार करना क्योंकि कांग्रेस से बीजेपी में आए सिंधिया समर्थक मंत्रियों के चुनाव हारने के बाद अब मंत्रिमंडल में चार और मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है. एक स्थान पहले से खाली पड़ा था, लेकिन प्रमुख दावेदार 7 से अधिक विधायक हैं, जिसमें एक को भी मनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. अब दीपावली के बाद संघ के साथ होने वाली बैठक में तय किया जाएगा कि किस विधायक को शामिल किया जाए या फिर स्वतंत्र प्रभार देकर दरकिनार कर दिया जाए.