बॉलीवुड के पॉपुलर फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी 25 फरवरी, 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. फिल्म गंगूबाई काठिवाड़ी का किरदार एक्ट्रेस आलिया भट्ट निभा रही हैं और 4 फरवरी को फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया है. गंगूबाई काठियावाड़ी एक सच्ची घटना है और फिल्म में गंगूबाई नाम की एक लड़की की कहानी दिखाई गई है. अब ये गंगूबाई हैं कौन और ऐसा क्या हुआ इनके जीवन में जो फिल्म बनाई गई तो चलिए हम आपको उनके बारे में कुछ बातें बताते हैं.

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कौन थीं गंगूबाई?

साल 1939 को गुजरात के काठिवाड़ में गंगा हरजीवनदास का जन्म हुआ था जिन्हें बाद में गंगूबाई या गंगू के नाम से जाना गया. गंगा नाम की ये लड़की बहुत ही सम्मानित परिवार की रहने वाली थीं और उनके सपने काफी बड़े थे. लेखक और पत्रकार एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ में लिखा था कि गुजरात की भोली-भाली दिखने वाली 16 साल की लड़की गंगूबाई के पिता की एक दुकान थी जिसमें उनके पिता एक अकाउंटेंट रखे थे जिसका नाम रमणीक था.

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गंगा पढ़ाई में होशियार थीं, और उनका अभिनेत्री बनने का सपना था. उन्हें कैसे भी करके बॉम्बे (अब मुंबई) जाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने रमणीक से दोस्ती कर ली. धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदली और गंगा ने अपनी उम्र से अधिक उम्र के लड़के रमणीक से शादी कर ली. घरवालों के खिलाफ जाकर ये शादी हुई तो घरवालों को बिना बताए वे दोनों बॉम्बे चले गए.

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गंगा कैसे बनीं गंगूबाई काठियावाड़ी?

एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ के मुताबिक, बॉम्बे आने का सपना गंगा का हमेशा से था और यहां आकर दोनों बस गए. शादी के कुछ समय बाद गंगा को अपने पति में कमियां नजर आने लगी. उनके बीच पैसों को लेकर छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा होने लगा और आखिर में मात्र 500 रुपये में रमणीक ने गंगा को बॉम्बे के मशहूर रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा के एक कोठे में बेच दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रमणीक ने गंगा को कहा था कि वो काम से शहर से बाहर जा रहा है और गंगा को उसकी मौसी के यहां रहना होगा.

गंगा को ये नहीं पता था कि ये जगह रमणीक की मौसी नहीं बल्कि एक वैश्यालय था. कुछ दिन रहने के बाद गंगा को सब समझ आने लगता है और ऐसे हालात में वो गांव भी वापस नहीं जा सकी. फिर बेमन और काफी परेशानियों का सामना करते हुए गंगा को गंगूबाई बनकर उन कामों को करना पड़ता था. इस दौरान सभी गंगा का इस्तेमाल करते थे, मारते और पीटते भी थे. कई तो बिना पैसा दिए चले जाते थे. इन हालातों से लड़ते-लड़ते गंगा कठोर गईं और पूरे इलाके में वे गंगा से गंगूबाई नाम से प्रचलित हो गईं.

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भारत के हर कोठों में गंगूबाई की पूजा

जिंदगी में आई कई परेशानियों से लड़ते-लड़ते गंगूबाई बेखौफ हो गई थीं और उनकी देखरेख में मुंबई के कई कोठे आ गए थे. इसी तरह वे अंडरवर्ल्ड और राजनीति की दुनिया में अपनी धाक जमाती रहीं. इस दौरान गंगूबाई ने वैश्याओं के लिए बहुत से अच्छे काम किए और उनके बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी ली. गंगूबाई ने अपने दंबगई के कारण लोगों को डराया हुआ था और ऐलान कर दिया था कि अगर कोई लड़की नहीं चाहती तो उसे कोठे पर नहीं बैठाया जाएगा.

कोठे की हर लड़की उन्हें गंगूमां कहकर पुकारती थी, बाद में उनके हक की बात करने के लिए गंगबाई तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी मिली थीं. साल 1960 के दौरान गंगूबाई मीडिया की कवरेज पर आईं और अपने दमदार भाषण से लोगों में खौफ पैदा कर गईं. गंगूबाई की मृत्यु साल 2008 में साधारण रूप से हुई. वेश्यालयों में लोग गंगूबाई को भगवान मानते हैं.

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