दुनिया अब टेक्नोलॉजी की आदी हो चुकी है. इस युग में बिना तकनीक की मदद के कुछ देर भी गुजारा करना मुश्किल सा लगता है, लेकिन आज भी महात्मा गांधी द्वारा स्थापित एक ऐसी संस्था है, जहां गांधी के विचारों के अनुसार सादगी भरी जीवनशैली को सिखाया जाता है. गांधी जी ने गुजरात विद्यापीठ को अंग्रेजों के काल में स्वदेशी शिक्षा की जड़ें मजबूत करने के लिए स्थापित किया था.

गुजरात विद्यापीठ

गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने 18 अक्टूबर, 1920 में की थी. यह गुजरात के अहमदाबाद नगर में स्थित है. इसकी स्थापना भारतीय युवकों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए प्रशिक्षण देने के लिए की गई थी. गांधीजी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि मैकाले द्वारा रची गई ब्रिटेन की औपनिवेशिक शिक्षा नीति का उद्देश्य दमनकारी ब्रिटिश साम्राज्य के लिए मानव संसाधन तैयार करना है. उस शिक्षा नीति के विरुद्ध गांधीजी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण व हिन्द स्वराज के लिए युवकों को तैयार करने के उद्देश्य से इस विद्यापीठ की स्थापना की.

इस विद्यापीठ की स्थापना का अनुकरण करते हुए वाराणसी, मुम्बई, कलकत्ता, नागपुर, मद्रास एवं अन्य कई नगरों के राष्ट्रवादी नेताओं ने विद्यापीठों की स्थापना की. गांधीजी ने ब्रितानी संस्थानों, वस्तुओं एवं प्रभावों के बहिष्कार का जो आह्वान किया था, उस पर हजारों छात्रों और अध्यापकों ने अंग्रेजो के शिक्षण संस्थानों को छोड़कर स्वदेशी विद्यापीठों में प्रवेश लिया. जीवतराम कृपलानी और नानाभाई भट्ट जैसे अनेक लोग पढ़ाने के लिए आगे आए.

विद्यापीठ के प्रथम कुलपति गांधीजी रहे, उसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, मोरारजी देसाई जैसे कुलपति भी मिले. सन् 1963 में भारत सरकार ने इसे मानद विश्वविद्यालय का दर्जा दिया.

जानें इस विद्यापीठ के बारे में ऐसी बातें जिन्हें जानकर आप आश्चर्यचकित हो जाएंगेछ

अब चरखा तो बदल गया है, लेकिन काम वही है

-गांधी जी का मनना था कि इंसान जितना सादगी से रहे उतना दूसरे लोगों को भी लाभ होगा. आदमी को आवश्यकता के हिसाब से ही चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए और इसी सिद्धांत पर गुजरात विद्यापीठ आज भी टिकी हुई है.

छात्र-छात्राएं अपना काम स्वयं करते हैं, खाना भी खुद ही बनाकर खाते हैं.

-गुजरात विद्यापीठ में देश के साथ-साथ विदेशों से भी छात्र आते हैं. विद्यापीठ में गांधी के विचारों को ही पढ़ाया जाता है. आज भी छात्र खादी के कपडे़ पहनते हैं. विद्यापीठ अपनी अलग तरह की पढ़ाई , पाठ्यक्रम , उद्योग ( स्किल बेस्ड एजुकेशन सिस्टम )और आत्मनिर्भर जीवन शैली के लिए जाना जाता है.

छात्र बच्चों को पढ़ाने का काम भी करते हैं.

-गांधीजी के विचारों के अनुसार- खादी के कपड़े पहनना और स्वयं के कार्य अपने हाथों से करना ये सभी विद्यापीठ में सिखाया जाता है. विद्यापीठ में सुबह 6 बजे उठकर प्रार्थना करना उसके बाद श्रम कार्य करना ( विद्यार्थी खुद झाड़ू-पोंछा करना, रोटी बनाना, कॉलेज की सफाई करना आदि काम खुद करते हैं) और उसके बाद तैयार होकर उपासना करते हैं. छात्र खुद चरखा भी चलाते हैं.

-आज भी छात्र परंपरागत तरीके से नीचे बैठकर ही पढ़ाई करते हैं. कॉलेज के सभी प्रोफेसर भी गांधी विचार मार्ग से ही छात्रों को पढ़ाते हैं. सब लोग यहां खादी के कपड़े ही पहनते हैं.

-विदेशी छात्र भी गांधी जी के रंग में रंग जाते हैं. वे भी खादी के कपड़े पहनना, टोपी पहनना, चरखा चलाना आदि करते हैं और गांधी जी के विचारों के अनुसार ही जीवन व्यतीत करते हुए शिक्षा ग्रहण करते हैं.

-विद्यापीठ में ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए ही पाठ्यक्रम और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर सकें ऐसे युवाओं को तैयार करने पर जोर देते हैं. इसी उद्देश्य से आज भी छात्र राज्य के पिछड़े और वनवासी इलाकों में जहां आधारभूत सुविधाएं भी नहीं हैं, वहां जाकर गरीब बच्चों को शिक्षा देने का काम करते हैं, जिन्हें ग्रामशिल्पी के नाम से जाना जाता है. विद्यापीठ के बहुत सारे विद्यार्थी ग्रामशिल्पी बने हैं, जो गांव-गांव जाकर गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं.

-विद्यापीठ के विद्यार्थी दैनिक प्रार्थना में भाग लेना, खादी पहनना, सूत कातना, मादक द्रव्यों का सेवन न करना, सामाजिक समस्याओं को लेकर शोध आदि कार्य करते हैं.

छात्र खादी वस्त्र ही पहनते हैं…

-महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत का उद्धार तभी होगा जब गांवों का होगा. गुजरात विद्यापीठ देश की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील है. गांवों का विकास करने के लिए किस प्रकार कार्य करने की आवश्यकता है – इसका क्रियात्मक अनुभव देने वाली यह अपने ढंग की अद्वितीय संस्था है.

-दूसरा ये कि विद्यापीठ के जीवन की एक विशेषता है, सामुदायिक जीवन का अनुभव प्रदान कराना. यहां के छात्र सामूहिक जीवन जीने के विचार के साथ ही आगे बढ़ते हैं. विद्यापीठ में अहिंसा, सामूहिक जीवन जीना, मादक द्रव्यों का सेवन न करना और सादगी पूर्ण जीवन जीने की शैली पर जोर दिया जाता है.

-इस संस्था में अधिकतर बच्चे गांवों से आते हैं. ये आगे जाकर गांधी जी के विचारों से गांव-गांव जाकर सामाजिक सेवा करते हैं.

भारत के प्रत्येक शिक्षण संस्थानों को विद्यापीठ से आत्मनिर्भरता और ग्रामीण भारत के प्रति प्रेम सीखना चाहिए. यहां आप सभी का स्वागत है. हमारी-आपकी विद्यापीठ पूर्णतः एक अलग संसार है. मानव सभ्यता को जीवित रखना है तो विद्यापीठ का अनुसरण करना ही होगा.