Devuthani Ekadashi Vrat 2022: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यतानुसार, एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है और मृत्यु के पश्चात हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है. बता दें कि हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है. एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. ऐसे में  एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है. आज 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी व्रत है और अगले दिन यानी कल 5 नवंबर को व्रत का पारण किया जाएगा. एकादशी व्रत के पारण से पहले व्रती को एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा हम पर और हमारे घर पर सदैव बनी रहती है.

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व्रत पारण का समय  

  1. पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 5 नवंबर, 06:27 Am से 08:39 Am
  2. पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 05:06 Pm

देवउठनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे. इस दिन राज्य के किसी व्यक्ति से लेकर पशुओं तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था. ऐसे में एक दिन एक बाहरी व्यक्ति राजा के पास आकर बोला महाराज! मुझे जीवन यापन के लिए कोई नौकरी दे दें. तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है रख लेते हैं. किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं दिया जाएगा.

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उस समय तो उस व्यक्ति ने राजा की सभी शर्तें मान लीं. लेकिन, एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया, तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा. मैं भूखा ही मर जाऊंगा. मुझे अन्न दे दो. राजा ने उसे शर्त की याद दिलाई, लेकिन वह नहीं माना, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए. वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा. जब भोजन बन गया. तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है. उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे और भोजन करने के पश्चात् भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया.

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अगली एकादशी को उसने राजा से दोगुने सामान की मांग की. राजा ने जब उससे कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं तो उस दिन भूखा ही रह गया. क्योंकि यह भोजन मेरे साथ भगवान भी खाते हैं. इसलिए हम दोनों के लिए ये सामान पर्याप्त नहीं  है.यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह बोला मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं. मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए.

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राजा की बात सुनकर वह बोला महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें. राजा एक पत्थर के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने हमेशा की तरह भोजन तैयार किया और भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान नहीं आए. अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण दे दूंगा. इसके बावजूद भी भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा. इतने में भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे. खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए. यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. इससे राजा को ज्ञान मिला. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.