बेहद मिलनसार और प्यारी सी दिखने वालीं 70 साल की महिला, जिनका टेक्नोलॉजी से तो ज्यादा वास्ता नहीं पड़ा, फिर भी आज वह वीडियो कॉल पर एक इंटरव्यू देने के लिए उपलब्ध हैं. वह निश्चित रूप से एक ऐसी महिला की तरह नहीं दिखतीं, जिन्होंने अमेरिकी जीवनशैली और संविधान को चुनौती दी हो. उन्हें एक इंटरनेशनल क्रिमिनल, वायर टैपर, धोखेबाज, जहर देने और हत्या के प्रयास का आरोपी बनाया गया. इसके बाद वह दोषी ठहराई गईं और उन्हें जेल भी हुई.

इस सच्चाई से इतर उनकी दिल को छू लेने वाली मुस्कान और सादगी ने मुझे उनसे कठिन सवालों को पूछने के लिए प्रोत्साहित किया. वह भी बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं. मां आनंद शीला के नाम से जानी जाने वाली शीला बिरन्स्टिल 1980 के दशक में आध्यात्मिक गुरु और ओशो के नाम से पहचाने जाने वाले “भगवान” रजनीश की निजी सचिव थीं. ओशो और रजनीशपुरम की आवाज मानी जाने वाली शीला ने एक “लेडी बॉस” की तरह रजनीश का साम्राज्य चलाया. 1981 में जब महाराष्ट्र के पुणे से रजनीश और उनके अनुयायियों को खदेड़ दिया गया था तो वही थीं, जिन्होंने रातोंरात अमेरिका के वास्को काउंटी, ओरेगॉन में उनके पुनर्वास की व्यवस्था की. उन्होंने वहां एक पूरा शहर ही बसा दिया था. 70 साल की मां आनंद शीला अब स्विट्जरलैंड के मैस्प्रेच में दो नर्सिंग (मातृसदन और पितृसदन) होम चलाती हैं. Opoyi के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने ओशो के साथ और ओशो के बाद के जीवन के बारे में खुलकर बातें कीं.

10 हजार लोगों के शहर को बसाने में एक शॉपिंग सेंटर, फूड कोर्ट, मेडिटेशन हॉल, एक हवाई अड्डे के साथ और भी बहुत से इंतजाम किए गए थे. हालांकि स्थानीय लोगों के साथ सब कुछ अच्छी तरह नहीं चल पाया, जिन्होंने इस संप्रदाय को खतरा मान लिया. यह संघर्ष ओशो के अनुयायियों और ओरेगॉन के स्थानीय लोगों और अधिकारियों के बीच था. शीला इस समुदाय के लोगों के लिए “स्टार” थीं, वहीं कुछ के लिए वह “एंटी हीरो” और “वैम्प” भी थीं.

सवाल- जब आप भगवान रजनीश से पहली बार मिलीं, तो कैसा लगा था?

शीला- मुझे उनसे उतना ही प्यार हो गया था … मुझे इस आदमी से प्यार हो गया और मैं अभी भी प्यार में हूं. यही मुझे प्यार में सुंदर बनाता है.

सवाल-आखिर ऐसा क्या था, जिसने आपको 16 साल की उम्र में सब कुछ छोड़कर उनका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया?

शीला- मैंने कुछ नहीं छोड़ा, मैंने सभी कुछ अपने साथ शामिल किया तो इसमें छोड़ने जैसा कुछ नहीं था. मैंने जीवन से कोई समझौता नहीं किया. मैंने अपना जीवन वैसे जिया, जैसा मुझे जीना चाहिए था और जैसा वो है.

सवाल- ओशो मूवमेंट में क्या गलत हुआ. वह कौन-सा बिंदु था, जिसकी वजह से यह पटरी से उतरा?

शीला- मुझे लगता है कि ये भगवान (रजनीश) की गलत संगत के कारण हुआ, जिन्होंने उनका परिचय ड्रग्स से करवाया. जब तक मुझे ड्रग्स के बारे में पता चला तो काफी देर हो चुकी थी. वह नहीं चाहते थे कि मैं उनकी इस बड़ी गलती को सुधारने में मदद करूं, जिसने निश्चित रूप से हम सभी को प्रभावित किया. और फिर मैं भी इस मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकती थी, क्योंकि मैंने भगवान (रजनीश) से जागरुकता सीखी थी. यह उनकी ही शिक्षा थी कि कोई भी लत आपको भटका सकती है और ध्यान के लिए जागरुकता की जरूरत होती है. इसलिए आप ड्रग्स में कैसे शामिल हो सकते हैं. इसलिए मेरे लिए जो उनकी शिक्षाएं और संप्रदाय को बचाने का काम कर रही थी, के लिए बहुत अतार्किक था कि वह ड्रग्स लें. यह मौलिक रूप से स्वीकार करने लायक नहीं था.इसके साथ मैं वो काम जारी नहीं रख सकती थी, जो मुझे 100 प्रतिशत करने के लिए दिया गया था. मैं 100 प्रतिशत से कम करना भी नहीं चाहती थी. यही बेसिक था और बेसिक सिचुएशन भी. बेसिक सिचुएशन पर आप मूल से समझौता नहीं कर सकते. और तभी मैंने छोड़ने का निर्णय लिया.

सवाल- भगवान रजनीश से आप अलग कैसे हुईं, कैसे उन्हें आपके खिलाफ भड़काया गया?

शीला- उनके चारों ओर गलत लोग रहने लगे और वह अत्यधिक भौतिकवादी बन गए.उनकी अपने ही सपनों में रुचि कम हो गई थी, जो कि ये संप्रदाय था. यह मानवजाति की बेहतरी के लिए बनाया गया था. किसी की आत्मा का खोना एक समझौता है, जिसे किसी भी परिस्थिति में किसी को स्वीकार नहीं करना चाहिए. अगर आप भगवान को पढ़ते हैं और पहले उनकी बातों को सुनते हैं, तभी तो नए आदमी पर बात कर पाते हैं. उनके पास एक नए आदमी की दृष्टि थी. उनके पास एक नए संप्रदाय की दृष्टि थी, जहां लोग रचनात्मक कार्यों के लिए इकट्ठे होते हैं, लेकिन उनकी रुचि इन सबमें कम हो गई थी. उन्हें रोल्स रॉयस के टीन के डिब्बों में दिलचस्पी होने लगी, जो एक धातु के अलावा कुछ और नहीं था. कुछ वर्षों बाद आपने इसे भी कबाड़खाने में डाल दिया. उन्होंने उस समय अपना सार ही खो दिया, जिससे हम सब सभी प्यार करते थे.

सवाल-क्या आपको लगता है कि भगवान रजनीश को किसी बात पर पछतावा होता होगा, जो आपको छोड़ना पड़ा?

शीला-मैं इस तरह से नहीं सोचती. मेरे जाने का समय हो गया था, क्योंकि उन्होंने मेरी कमजोरी के लिए मेरा प्यार लिया. और मेरा प्यार ही मेरी ताकत था, जिसमें मुझे दूर तक चलने की हिम्मत दी. मेरा मतलब है कि बहुत से लोग यूं ही जिस पद पर मैं थी, नहीं हटना चाहेंगे. हम वहां इतिहास रच रहे थे. आध्यात्मिक इतिहास, सरकारी इतिहास, रचनात्मक इतिहास. हम चारों और इतिहास ही बना रहे थे. और इस पावर से बहुत से लोग दूर नहीं जा पाते, लेकिन मेरे प्यार ने मुझे ऐसा करने की ताकत दी. मेरे माता-पिता से भी मुझे सीख मिली कि बेसिक पर समझौता न करें और किसी को इसकी अनुमति न दें. यह सफलता या विफलता का सवाल नहीं है. यह जीवन के सबसे बुनियादी मूल्यों का सवाल है.

सवाल- भगवान की एक सीख, जो आपको लगता है कि अभी भी प्रासंगिक है?

शीला– उनकी सभी शिक्षाओं का उपयोग रोज किया जा सकता है. मैंने जो सीखा है, उनका उपयोग मैं रोजमर्रा के जीवन में करती हूं. हिम्मत रखो, उनकी शिक्षाओं में से एक थी. साथ ही उन मुद्दों से समझौता न करें, जो आपकी ईमानदारी के लिए महत्वपूर्ण हैं. इन्हें हर स्थिति में हर दिन इस्तेमाल कर सकते हैं.

सवाल-विडंबना यही है कि आप उनकी शिक्षाओं का पालन कर रही थीं और शायद वह बीच में ही खुद के बनाए रास्ते से हट गए थे?

शीला- हां, निश्चित रूप से मैं उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर रही हूं. चाहे उन्होंने इसे खोया या नहीं, मैं इसे जज नहीं कर सकती, लेकिन वह निश्चित रूप से गलत संगत में थे. हम अपने जीवन में जिए हैं, अपने जीवन में रहेंगे और समय-समय पर गलत लोग भी मिलते रहेंगे. आपको इस बारे में जागरूक रहने की जरूरत है. आपको सतर्क रहना चाहिए.

सवाल- आपने एक पत्रकार को ‘दलाल’ कहा था. यही नहीं जब रजनीशपुरम के अंदर ‘वेश्यावृत्ति’ के आरोप लगाने पर वेटिकन पर भी हमला बोला था. ऐसा क्यों किया था?

शीला- यह दृढ़ विश्वास की ताकत थी. वह उस आदमी पर हमला कर रहा था, जिसे मैं प्यार करती थी, वह मेरे उस घर पर हमला कर रहा था, जहां मैं रह रही थी. वह बिना जज के फैसला कर रहा था. वह लंबे समय से गायब था और पत्रकारिता में इस तरह की हरकत करने ही आया था. मुझे उसे सीधा करना पड़ा. वह केवल ‘दलाल’ और ‘वेश्या’ को देख सकता है और उसी तरह के विचार रख सकता है, लेकिन हम वैसे नहीं हैं.

सवाल- रजनीशपुरम के अंदर फ्री सेक्स, ओपन मैरिज की अवधारणा की अक्सर आलोचना की जाती थी.इसके पीछे क्या आइडिया था, आप बता सकती हैं?

शीला- यहीं पर हम गलतियां करते हैं. अपनी सेक्सुएलिटी में सहज होने के लिए हम इसे प्यार से जोड़ते हैं, लेकिन दोनों ही अलग-अलग पहलू हैं. सेक्स हमारे शरीर में निहित है और प्यार हृदय में. भगवान ने हमें सहज बनाया है, अपनी शारीरिक इच्छाओं और जरूरतों को अस्वीकार न करें, इसके साथ सहज रहें, इसका पता लगाएं, इसके साथ संपर्क में रहें. इसे अस्वीकार और वर्जित न करें,जैसा कि अधिकांश धर्म करते हैं. बता दूं कि लोगों ने फेस वेल्यू पर सेक्स किया. कृपया इसका दुरुपयोग न करें, इसे किसी पर थोंपे भी नहीं. सेक्स सहमति से करें. प्रभुत्व स्थापित करने या आक्रामकता से नहीं बल्कि इसे एक सकारात्मक भावना से करें.इसलिए भगवान (रजनीश) सेक्सुएलिटी के लिए एक बहुत ही स्वस्थ और सम्मानजनक दृष्टिकोण की पेशकश कर रहे थे.

सवाल- क्या जीवन में ऐसा पल भी आया, जब आपको लगा सब कुछ खत्म हो गया?

शीला- नहीं, कभी नहीं. ये ताकत मुझे मेरे माता-पिता से मिलती है. अगर मैंने हार मान ली होती तो ये प्यार करने वाले माता-पिता के साथ अन्याय होता. हम बच्चे उनकी आंखों के तारे थे … अगर हमारे साथ कुछ गलत होता है तो वे सबसे बड़े पीड़ित होते हैं और मैं खुद को इसकी अनुमति नहीं दे सकती. मुझे अपने खुद के जीवन में लौटना पड़ा. इससे मेरे अपने चरित्र और भगवान के लिए मेरे प्रेम के बारे में बहुत कुछ साबित भी होता है कि मैं उस जहर को भी पचा सकती हूं, जो उन्होंने (रजनीश) मेरे साथ यात्रा के आखिरी दौर में मुझे परोसा था. मैंने सब मैनेज किया. मुझे ये कहते हुए गर्व हो रहा है कि वह कहीं न कहीं ये जानते थे कि मेरे साथ अनुचित हुआ. लेकिन इन सब बातों को लेकर मेरे साथ कोई भी समस्या नहीं है.

सवाल- अगर आपको अपनी लाइफ दोबारा री-सेट करने का मौका मिलेगा, तो आप इसमें क्या बदलना चाहेंगी?

शीला- नहीं, नहीं. जीवन जैसा था और जैसा है, वैसा ही परिपूर्ण है, भविष्य में भी यह परिपूर्ण होगा. आप सीखने के लिए जीवन का उपयोग करते हैं, आप अपने आप से संपर्क करने के लिए जीवन का उपयोग करते हैं और स्वयं के संपर्क में आने से आप स्वयं को जान पाते हैं. मैं कुछ नहीं बदलूंगी.

सवाल- जेल में भी खुद को पॉजिटिव रखने के लिए आपने क्या किया?

शीला- जब आप एक मुश्किल स्थिति में होते हैं, तो हम बाहर ध्यान केंद्रित करते हैं, हम हर किसी को दोष देते हैं. हम उस स्थिति को नकारते हैं, जब हम उस स्थिति में होते हैं. हमारी सारी ऊर्जा ये साबित करने और वो साबित करने में चली जाती है. मेरे पास दोष देने के लिए कोई और नहीं, बल्कि मैं खुद ही थी. मुझे भगवान (रजनीश) से खुद ही प्यार हो गया, मैंने अपने दम पर उनके साथ रहने का फैसला किया, मैंने जो जिम्मेदारी ले रखी थी, उसे भी खुद ही लेने का फैसला किया था.और मुझे खुद ही इस झंझट से बाहर आना पड़ा. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे माता-पिता एक पल के लिए भी इससे डरें कि मैं गलत हूं या नहीं. मेरा प्यार तब भी उतना ही शुद्ध था, जितना अब है. इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. दुनिया ने मुझे दोषी ठहराया, जो इस दुनिया की ही समस्या है, लेकिन दुनिया ने किया तो इसका मतलब ये नहीं है कि यह सही है और मुझे यही करना है. इसलिए मैंने अपने भीतर ही फोकस किया. उस समय का उपयोग मैंने खुद को बेहतर रूप से जानने, धैर्य, समय और स्वीकार करने की प्रवृत्ति को जानने के लिए किया. ये सभी शब्द हैं, लेकिन महसूस करने के लिए, जानने के लिए और स्वीकार करने के लिए ये सबसे बड़े हीरे हैं, जिन्हें कोई भी पहन सकता है.

सवाल- क्या आपको लगता है कि भगवान रजनीश की मृत्यु प्राकृतिक थी. या कुछ और थी?

शीला- नहीं, उनकी मौत प्राकृतिक नहीं थी. 1996 में लिखी गई मेरी किताब “डोन्ट किल हिम” में मैंने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह एक प्राकृतिक मौत नहीं थी, अगर यह एक प्राकृतिक मौत होती तो मुझे यह महसूस होता. वह एक बुरी संगत में थे, ये वही लोग हैं, जो रजनीशपुरम में भी भगवान (रजनीश) को ड्रग्स दे रहे थे.

सवाल- आपके प्यार का अंदाज जीवंत और शाश्वत लगता है. क्या आपको लगता है कि आजकल के रिश्ते कमजोर और नाजुक से हो गए हैं?

शीला- रिश्ते सिर्फ निभाने की चीज नहीं होनी चाहिए. साथ ही यह जरूरत पर आधारित नहीं होना चाहिए. यह किसी के अहंकार को दिखाने या किसी के अहंकार पर हावी होने का बहाना भी नहीं होना चाहिए. रिश्ता दो व्यक्तियों के बीच होता है और हममें से प्रत्येक की अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं. हम सभी के अलग-अलग विचार और पसंद होती हैं. अगर मैं अपने विचार दूसरे पर थोंपता हूं तो यह उल्लंघन है. रिश्ते को सुरक्षा का साधन मात्र नहीं होना चाहिए. ईर्ष्या एक और कारण है, जो रिश्ते को नष्ट कर देती है. जब आप रिश्ते में होते हैं तो उस व्यक्ति पर अधिकार जताने की कोशिश करते हैं. इसके बाद एक प्रतियोगिता-सी शुरू हो जाती है. ये सभी इममैच्योरिटी, मूर्खतापूर्ण और दुखद स्थितियां हैं.

सवाल- डोनाल्ड ट्रंप को लेकर आप क्या सोचती हैं. अगर आप वोट करेंगी तो किसे चुनेंगी, ट्रंप या जो बाइडेन?

शीला- डोनाल्ड ट्रंप के बारे में सोचकर मैं अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करूंगी. मैं निश्चित रूप से कहूंगी कि डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में जो बाइडेन हजार प्रतिशत बेहतर विकल्प हैं. जो बाइडेन की तुलना डोनाल्ड ट्रंप से की ही नहीं जा सकती. दोनों की तुलना करना ही शर्मनाक है.

सवाल- आप नरेंद्र मोदी के बारे में क्या सोचती हैं?

शीला- मैं उन्हें अच्छी तरह से नहीं जानती. मैं भारतीय राजनीति को फॉलो नहीं करती. उस पर कोई राय देने के लिए मुझे पहले समझना होगा. लेकिन मैं ये जरूर कहूंगी कि वह एक गुजराती हैं और मेरी जड़ें भी गुजरात में ही हैं.

सवाल- आपकी नजर में इस पृथ्वी पर आज ‘हॉटेस्ट आदमी’ कौन है ?

शीला- भगवान (रजनीश). वह चले गए हैं, लेकिन अभी भी मेरे साथ हर सांस में जो मैं लेती हूं, जीवित हैं. वह अभी भी मेरे साथ जीवित हैं.

सवाल- भगवान के अलावा कोई और?

शीला- सभी युवा जो टैलेंट और एक नई सोच से भरे हैं. किसी एक नाम कहना मुश्किल होगा

सवाल- फैशल को लेकर कोई सुझाव देना चाहेंगी?

शीला- आप जो पहनते हैं उसमें सहज रहें. दूसरों की नकल न करें. खुद को महसूस करें और रंगों से खेलें.

सवाल- शीला को वन वर्ल्ड में डिफाइन करें?

शीला- एक महिला जो जीवन से प्यार करती है.

मां आनंद शीला के अलावा कई लोग ये दावा नहीं कर सकते कि वे अपनी शर्तों पर जीवन जीते थे, लेकिन 70 साल की शीला ने दावा किया उन्होंने जीवन को अच्छे और बुरे दोनों समय में जिया और प्यार किया.

Fact File –मां आनंद शीला ने 1981-85 तक ओशो की निजी सहयोगी के रूप में काम किया. उन्हें हत्या की कोशिश और1984 में रजनीशपुरम में हुए बायो-टेटर अटैक में भूमिका के लिए दोषी ठहराया गया. उन्हें 20 साल की सजा भी हुई, लेकिन 39 महीने बाद उन्हें पैरोल पर रिहा कर दिया गया. इसके बाद वह स्विटजरलैंड चली गईं जहां वह नर्सिंग होम चला रही हैं और बुजुर्गों की मदद कर रही हैं.