राज़ कई बार खास होते हैं, लेकिन किसी जायके का राज़ क्या उसे सचमुच इतना लजीज बना देता है कि देश ही नहीं विदेश में रहने वाले नॉनवेज के शौकीन भी उस जायके के दीवाने हो जाएं? सन् 1905 यानी करीब 115 साल से चला आ रहा टुंडे कबाब का जायका. वही मीट, वही मसाला, लेकिन कबाब खाने के शौकीनों को आखिर टुंडे कबाब की हुड़क क्यों उठती है? इसका जवाब है- कबाब में डाले जाने वाले वे मसाले जिसके बारे में अस्सी बरस के रईस अहमद (टुंडे कबाब के मालिक) और उनके परिवार के कुछ करीबी लोगों के अलावा और कोई नहीं जानता. आइये जानते हैं इस परिवार से ही टुंडे कबाब के जायके की कहानी.

100 से ज्यादा मसाले कबाब को मुंह में ही घोल देते हैं

हाजी परिवार ने इस सीक्रेट को आज तक किसी को भी नहीं बताया. यहां तक कि परिवार के ज्यादातर मेंबर्स को भी इसमें पड़ने वाले मसालों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. इन कबाबों में सौ से ज्यादा मसालों का इस्तेमाल किया जाता है.

उस्मान अहमद ने बताया-मसाले का राज परिवार के कुछ लोग की जानते हैं

अमीनाबाद में टुंडे रेस्टोरेंट को चलाने वाले उस्मान अहमद के अनुसार-टुंडे के कबाबों में आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है, जो 100 साल पहले मिलाए जाते थे. आज तक उन्हें बदलने की जरूरत नहीं महसूस हुई. उस्मान कहते हैं कि यह सब यूनानी टिप्स मसाले होते हैं, जो कबाबों को हजम होने में मदद करते हैं. कहा जाता है कि नॉनवेज पेट के लिए हैवी हो जाता है, लेकिन हमारे कबाबों की खासियत यही है. इन्हें खाने वाले कभी पेट भारी होने की शिकायत नहीं करते हैं. इनमें पड़ने वाले कुछ मसाले हमारे पास ईरान से भी आते हैं. इन मसालों को मेरे साथ मेरे वालिद हाजी रईस अहमद, अम्मी और मेरी पत्नी घर में ही पीस कर तैयार करती हैं. एक महीने का मसाला एक साथ तैयार होता है. उस्मान कहते हैं कि हमारे परिवार के कुछ लोगों के अलावा और कोई दूसरा शख्स इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता है. यही हमारा ट्रेड सीक्रेट है, जिसे आज तक किसी को नहीं बताया गया. इसके अलावा इसमें कच्‍चा पपीता, भुना बेसन, खुशबू (केवड़ा, लौंग का धुंआ) भी मिलाया जाता है.

लखनऊ के चौक से शुरू हुई थी इस कबाब की यात्रा

कहा जाता है लखनऊ आने वाला वो हर शख्स जो नॉनवेज का शौकीन है, पता पूछते-पूछते टुंडे कबाब की दुकान पर एक बार जरूर पहुंचता है. इन कबाबों को खाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. वो ये भी देखना चाहते हैं कि आखिर ऐसा क्या खास है यहां के टुंडे कबाब में. टुंडे कबाब के शौकीनों के लिए देशभर के बड़े-बड़े खानसामे और फाइव स्टार होटलों के पकवान भी फीके हैं. नॉनवेज खाने के शौकीनों में जितनी शोहरत लखनऊ के टुंडे कबाब ने पाई है, उतनी किसी भी जायके ने नहीं. उस्मान कहते हैं कि अकबरीगेट की एक छोटी-सी दुकान से हमारे बुजुर्गों ने इस जायके की शुरुआत की थी. अब तो चौक के साथ, अमीनाबाद और कपूरथला में भी हमारे आउटलेट खुल गए हैं. 25 साल से मैं अमीनाबाद की दुकान देख रहा हूं और वालिद साहब चौक की दुकान देखते हैं.

टुंडे नाम के पीछे की कहानी भी है दिलचस्प

इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है. असल में टुंडे उसे कहा जाता है, जिसका हाथ न हो. रईस अहमद के वालिद और उस्मान अहमद के दादा हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन थे.एक बार पतंग के चक्कर में उनका हाथ टूट गया, जिसे बाद में काटना पड़ा. इस घटना के बाद मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे. टुंडे होने की वजह से जो उनकी दुकान पर कबाब खाने के लिए आता वो टुंडे के कबाब बोलने लगा और यहीं से नाम पड़ गया- टुंडे कबाब.

भोपाल के बुढ़े नवाब के लिए ईजाद किया गया था कबाब, जिसे बिना दांतों के खा सकें

लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी की शुरुआत से ही शुरू होती है, जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी-सी दुकान खोली गई, हालांकि टुंडे कबाब का‌ किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है.दुकान के मालिक 80 वर्षीय रईस अहमद ने बताया-उनके पुरखे भोपाल के नवाब के यहां खानसामा हुआ करते थे. नवाब खाने पीने के बहुत शौकीन थे. बढ़ती उम्र में भी नवाब साहब और उनकी बेगम की खाने पीने की आदत नहीं गई, ऐसे में उनके लिए ऐसे कबाब बनाने की सोची गई, जिन्हें बिना दांत के भी आसानी से खाया जा सके.इसके लिए गोश्त को बारीक पीसकर और उसमें पपीता मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए. पेट दुरुस्त रखने और स्वाद के लिए उसमें चुन-चुन कर मसाले मिलाए गए. इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया और अकबरी गेट के पास गली में छोटी-सी दुकान शुरू कर दी. हाजी के इन कबाबों की शोहरत इतनी तेजी से फैली की पूरे शहर भर के लोग यहां कबाबों का स्वाद लेने आने लगे. इस शोहरत का ही असर था कि जल्द ही इन कबाबों को अवध के शाही कबाब का दर्जा मिल गया.

बॉलीवुड स्टार्स की जुबां पर भी रहता है टुंडे कबाब का नाम

शौकीनों में आम लोग ही नहीं फिल्म, टीवी और क्रिकेट की दुनिया के सितारे भी इन कबाबों के दीवाने हैं. किसी ईवेंट, प्रमोशन पर आने वाले इन सितारों की एक ही डिमांड रहती हैं कि उन्हें टुंडे के कबाब खाने हैं. पिछले दिनों लखनऊ में लगातार फिल्मों की शूटिंग कर रहे आयुष्मान खुराना ने कहा था कि यहां के टुंडे कबाब कमाल के हैं.इसे सोचकर ही मुंह में पानी आ जाता है. पिछले दिनों शहर आईं सारा अली खान भी वक्त निकालकर टुंडे के कबाबों का जायका लेने पहुंची थीं. इनके अलावा रणबीर कपूर, इम्तियाज अली, शबाना आजमी, जावेद अख्तर, फरहान अख्तर, नवाजउद्दीन सिद्दीकी, साउथ के एक्टर एम नस्सर, सैफ अली खान, शाहरुख खान, अदित्य राय कपूर, शान, परिणीति चोपड़ा, अनिल कपूर, गोविंदा जैसे कई सितारे इस कबाब की चाहत में अमीनाबाद और अकबरीगेट पहुंचते हैं. जब दिलीप कुमार ने भी जब इन कबाबों को खाया तो वे भी इसकी लज्जत के कायल हो गए थे.