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3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस

सावित्रीबाई फुले की जयंती पर ही राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस मनाने की परंपरा है. लेकिन क्या आपको पता है कि, सावित्रीबाई फुले की जयंती पर ही राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस क्यों मनाते हैं. चलिए हम आपको इस बारे में जानकारी देते हैं.

Written by:Sandip
Published: January 02, 2023 01:27:58 New Delhi, Delhi, India

Savitribai Phule National Women Teachers Day Date: पूरे देश में 3 जनवरी को राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस (National Women Teachers Day) के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) की जयंती भी है. आपको बता दें कि, सावित्रीबाई फुले की जयंती पर ही राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस मनाने की परंपरा है. लेकिन क्या आपको पता है कि, सावित्रीबाई फुले की जयंती पर ही राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस क्यों मनाते हैं. चलिए हम आपको इस बारे में जानकारी देते हैं. और इतिहास बताते हैं.

दरअसल, सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका (India’s First Women Teacher) थी. सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का कार्य किया.सावित्रीबाई फुले. ने महात्मा जोतीबा फुले ने मिलकर भारत का पहली महिला विद्यालय 1 जनवरी 1848 ई में पुणे के भीड़बाडा में खोला था. उससे पहले सावित्रीबाई फुले का अध्यापक प्रशिक्षण अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में हुआ था. वहीं इस तथ्य को भी रेखांकित किया जाना जरूरी है कि वहां दूसरी छात्रा फातिमा शेख थीं. वहीं प्रथम मुख्य अध्यापिका सावित्रीबाई फुले व दूसरी अध्यापिका फातिमा शेख व सगुणा बाई थीं.

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सावित्रीबाई फुले जब स्कूल पढ़ाने जाती थीं तो मनुवादी लोग उनका मज़ाक उड़ाते, गाली-गलौज करते, गोबर, बिष्ट, कीचड़ उन पर फेंक देते. पर, माता सावित्रीबाई फुले बगैर किसी से उलझे स्कूल जातीं और सबको पढ़ाने का कार्य करतीं. इन सबका वे क्या जबाव देती थी आपको मालूम है, नहीं! तो जानिए. ये अपने पास में एक झोला रखती थीं और उसमें पहनने के लिए साड़ी रखतीं कीचड़, गोबर वाली साड़ी बदल लेतीं और स्कूल पहुँचकर छात्राओं को शिक्षा देती थीं.

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सावित्रीबाई फुले जब स्कूल पढ़ाने जाती थीं तो मनुवादी लोग उनका मज़ाक उड़ाते, गाली-गलौज करते, गोबर, बिष्ट, कीचड़ उन पर फेंक देते. पर, माता सावित्रीबाई फुले बगैर किसी से उलझे स्कूल जातीं और सबको पढ़ाने का कार्य करतीं. इन सबका वे क्या जबाव देती थी आपको मालूम है, नहीं! तो जानिए. ये अपने पास में एक झोला रखती थीं और उसमें पहनने के लिए साड़ी रखतीं कीचड़, गोबर वाली साड़ी बदल लेतीं और स्कूल पहुँचकर छात्राओं को शिक्षा देती थीं.

शादी और बच्चा गोद लेने के कुछ वर्षों के बाद, महात्मा ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1848 में लड़कियों के लिए स्कूलों की शुरुआत की. सावित्रीबाई एक भाग्यशाली महिला थीं, उन्होंने महात्मा फुले से शादी इसलिए की, क्योंकि वह महिलाओं के प्रति हो रहे अनन्य के खिलाफ थे. महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी को पढ़ना और लिखना सिखाया. उनके इस प्रयास से वह अपने समय की अद्वितीय महिला गई, क्योंकि उस समय में लड़की की शिक्षा को कोई महत्व नहीं दिया जाता था. सावित्रीबाई फुले हमेशा से महिलाओं की इस स्थिति को बदलना चाहती थीं, उन्होंने अन्य लड़कियों को शिक्षा देने का विचार किया और और लड़कियों को पढ़ना शुरू किया, इस तरह वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं.

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