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Savitribai Phule Speech in Hindi: सावित्रीबाई फुले जयंती पर भाषण व निबंध, उनसे जुड़ी खास बाते जानें

  • सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं.
  • सावित्रीबाई फुले की शादी मात्र 9 साल में ज्योतिराव फुले से हुई थी.
  • अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला.

Written by:Gautam Kumar
Published: January 03, 2023 04:14:14 New Delhi, Delhi, India

भारत की पहली महिला शिक्षिका (Women Teacher) सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) एक ऐसा नाम है जो भारतीय इतिहास में महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए उनके भीतर ज्ञान जगाने का सफल प्रयास किया. सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव में हुआ था.

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जानिए सावित्रीबाई फुले के बारे में कुछ खास बातें:

– आजादी से पहले भारत में महिलाओं के साथ बहुत भेदभाव होता था. समाज में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी. सावित्रीबाई फुले को बचपन में स्कूल जाने से रोका गया था. लेकिन उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने का साहस नहीं खोया. सावित्रीबाई फुले का जीवन महिला सशक्तिकरण को समर्पित था.

– सावित्रीबाई फुले की शादी मात्र 9 साल में ज्योतिराव फुले से हुई थी. सावित्रीबाई फुले का पढ़ाई के प्रति समर्पण देखकर ज्योतिराव फुले ने उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में शिक्षक का प्रशिक्षण लिया और शिक्षिका बन गईं.

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– अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला.

– फुले दंपत्ति ने भारत में कुल 18 स्कूल खोले. अंग्रेजों ने उनके इस योगदान को सम्मानित भी गया.

– लड़कियों को शिक्षित करने की पहल के दौरान उन्हें पुणे की महिलाओं के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा. जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थीं तो महिलाएं उन पर गोबर और पत्थर फेंकती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाकर धर्म के खिलाफ काम कर रही हैं.

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विधवाओं के लिए भी किया काम:

– सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए एक आश्रम भी खोला. इसके अलावा, निराश्रित महिलाओं, बाल विधवाओं और उनके परिवारों द्वारा परित्यक्त महिलाओं को भी आश्रय दिया गया. इसी आश्रम में वे महिलाओं और लड़कियों को पढ़ाती भी थीं.

– जाति और पितृसत्ता से संघर्ष करते हुए उनके काव्य संग्रह प्रकाशित हुए. उन्होंने कुल चार पुस्तकें लिखीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी कहा जाता है.

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