Guru Gobind Singh Jayanti 2022: गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था. वे सिखों के 10वें और आखिरी गुरु थे. बचपन में उनका नाम ‘गोबिंद राय‘ था. उन्होंने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं सीखीं थी. इसके साथ ही उन्‍होंनें धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी. गुरु गोबिंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ एक निर्भीक योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे. उनकी शिक्षाओं ने सिख समुदाय और अन्य लोगों को कई पीढ़ियों से प्रेरित किया है. इस लेख में आज हम आपको गुरु गोबिंद सिंह (10 Big things related to the life of Guru Gobind Singh) के जीवन से जुड़ी 10 बड़ी बातें बताने वाले हैं.

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गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुड़ी 10 बड़ी बातें (10 Big things related to the life of Guru Gobind Singh)- 

1. गुरु गोबिंद सिंह का जन्‍म सिख धर्म के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के घर तख्त श्री पटना साहिब में हुआ था. 

2. गुरु गोबिंद सिंह की उम्र 9 वर्ष थी जब वो 10वें सिख गुरू बने थे. 

3. अपने पिता गुरु तेग बहादुर के मुगल सम्राट औरंगजेब के हाथों शहादत स्वीकार करने के बाद वे कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा के लिए आगे आए थे. 

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4. अपने बचपन में ही बालक गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी और फारसी समेत कई भाषाएं सीखीं थी. इसके अलावा उन्होंने युद्ध में निपुण होने के लिए मार्शल आर्ट भी सीखा.

5. गुरु गोबिंद सिंह दक्षिण सिरमुर, हिमाचल प्रदेश में यमुना नदी के किनारे एक शहर पांवटा गए थे. यहां पर उन्होंने पांवटा साहिब गुरुद्वारा की स्थापना की और सिख सिद्धांतों के बारे में प्रचार किया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पांवटा साहिब आज भी सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. गुरु गोबिंद सिंह ने यहां 3 साल बिताए थे. इस दौरान उन्होंने कई ग्रंथ लिखे और अपने अनुयायियों की पर्याप्त संख्या भी एकत्र की. 

6. सितंबर 1688 में गुरु गोबिंद सिंह ने भीम चंद, गढ़वाल के राजा फतेह खान और शिवालिक पहाड़ियों के अन्य स्थानीय राजाओं की एक संयुक्‍त सेना के खिलाफ भंगानी की लड़ाई लड़ी थी. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 19 साल थी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लड़ाई एक दिन तक चली और हजारों लोगों की जान इस दौरान चली गई. एक और अहम बात आपको बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने संयुक्‍त सेना को मात दी.

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7. बिलासपुर की रानी के निमंत्रण पर गुरु गोबिंद सिंह नवंबर 1688 में आनंदपुर लौट आए थे, जो फिर बाद में चक नानकी के नाम से जाना जाने लगा.

8. गुरु गोबिंद सिंह ने 30 मार्च 1699 को अपने अनुयायियों को आनंदपुर में अपने घर पर इकट्ठा किया. उन्‍होंने एक स्वयंसेवक से अपने भाइयों के लिए अपना सिर बलिदान करने के लिए कहा. ये सुनकर एक अनुयायी जिनका नाम दया राम था फौरन इसके लिए तैयार हो गए. गुरु उन्हें एक तंबू के अंदर लेकर गए और एक खूनी तलवार के साथ बाहर निकले. उन्होंने फिर से एक स्वयंसेवक को बुलाया और फिर ऐसा ही किया. 5 बार ऐसा करने के बाद, आखिर में गुरु 5 स्वयंसेवकों के साथ तम्बू से निकले और तम्बू में 5 सिर कटी बकरियां मिलीं. इन 5 सिख स्वयंसेवकों को गुरु ने ‘पंज प्यारे’ या ‘पांच प्यारे’ के रूप में नामित किया. 

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9. साल 1699 की सभा में गुरु गोबिंद सिंह ने ‘खालसा वाणी’ की स्थापना की – “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह”. उन्होंने अपने सभी अनुयायियों का नाम ‘सिंह’ रख दिया जिसका मतलब है शेर. उन्होंने खालसा के ‘5 ककार’ या सिद्धांतों की भी स्थापना की. ये हैं- केश, कंघा, कच्‍छा, कड़ा, कृपाण. 

10. आपको मालूम हो कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा और सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को ही सिखों के अगले गुरु के रूप में नामित किया था. बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने 07 अक्टूबर 1708 को अपना शरीर छोड़ दिया था. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)