तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों के सामने केंद्र सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि वह वर्तमान में लागू न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को जारी रखने के लिए ‘‘लिखित में आश्वासन’’ देने को तैयार है.

बहरहाल, किसान संगठनों ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि जब तक सरकार तीनों कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की उनकी मांग स्वीकार नहीं करती तब तक वे आंदोलन जारी रखेंगे तथा इसे और तेज करेंगे. सरकार ने कम से कम सात मुद्दों पर आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव भी दिया है, जिसमें से एक मंडी व्यवस्था को कमजोर बनाने की आशंकाओं को दूर करने के बारे में है.

तेरह आंदोलनकारी किसान संगठनों को भेजे गए मसौदा प्रस्ताव में सरकार ने यह भी कहा कि सितंबर में लागू किए गए नए कृषि कानूनों के बारे में उनकी चिंताओं पर वह सभी आवश्यक स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार है, लेकिन उसने कानूनों को वापस लेने की आंदोलनकारी किसानों की मुख्य मांग के बारे में कोई जिक्र नहीं किया है. इसके बाद किसान नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन कर कहा कि सरकार के प्रस्ताव में कुछ भी नया नहीं है और वे अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कही ये बात 

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार किसानों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील है. उन्होंने किसानों के साथ जारी वार्ता को ‘‘कार्य प्रगति पर है’’ (वर्क इन प्रोग्रेस) बताया और भरोसा जताते हुए कहा कि इसके जल्द परिणाम आएंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के मुद्दे पर सरकार ‘‘संवेदनशील’’ है और उसने आंदोलनकारी किसानों से कई दौर की वार्ता की है और उनके मुद्दों का समाधान करने के लिए इच्छुक है.

गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार की रात किसान संगठनों के 13 नेताओं से मुलाकात के बाद कहा था कि सरकार तीन कृषि कानूनों के संबंध में किसानों द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक मसौदा प्रस्ताव भेजेगी. हालांकि, किसान नेताओं के साथ बैठक में कोई नतीजा नहीं निकला था, जो इन कानूनों को वापस लेने पर जोर दे रहे हैं.

सरकार और किसान संगठनों के नेताओं के बीच छठे दौर की वार्ता बुधवार की सुबह प्रस्तावित थी, जिसे रद्द कर दिया गया. कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की तरफ से भेजे गए मसौदा प्रस्ताव में कहा गया है कि नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों की जो आपत्तियां हैं उन पर सरकार खुले दिल से विचार करने के लिए तैयार है. इसमें कहा गया है, ‘‘सरकार ने खुले दिल से और सम्मान के साथ किसानों की चिंताओं का समाधान करने का प्रयास किया है. सरकार किसान संगठनों से अपील करती है कि वे अपना आंदोलन समाप्त करें.’’

मंडी व्यवस्था पर सरकार का जवाब 

नये कानूनों के बाद मंडी व्यवस्था कमजोर होने की किसानों की आशंका पर सरकार ने कहा कि संशोधन किया जा सकता है, जहां राज्य सरकारें मंडियों के बाहर काम करने वाले व्यवसायियों का पंजीकरण कर सकती हैं. राज्य सरकारें भी उन पर कर और उपकर लगा सकती हैं, जैसा वे एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समिति) मंडी में करती थीं.

किसानों के अनुसार, उनकी एक चिंता यह भी है कि उनसे ठगी की जा सकती है क्योंकि पैन कार्ड धारक किसी भी व्यक्ति को एपीएमसी मंडियों के बाहर व्यवसाय करने की इजाजत होगी. इस पर सरकार ने कहा कि इस तरह की आशंकाओं को खारिज करने के लिए राज्य सरकार को शक्ति दी जा सकती है कि इस तरह के व्यवसायियों का पंजीकरण करे और किसानों के स्थानीय हालात को देखकर नियम बनाए.

विवाद के समाधान के लिए किसानों को दीवानी अदालतों में अपील का अधिकार नहीं मिलने के मुद्दे पर सरकार ने कहा कि वह दीवानी अदालतों में अपील के लिए संशोधन करने को तैयार है. वर्तमान में विवाद का समाधान एसडीएम के स्तर पर किये जाने का प्रावधान है.

बड़े कॉरपोरेट घरानों के कृषि जमीनों के अधिग्रहण की आशंकाओं पर सरकार ने कहा कि कानूनों में यह स्पष्ट किया जा चुका है, फिर भी स्पष्टता के लिए यह लिखा जा सकता है कि कोई भी क्रेता कृषि जमीन पर ऋण नहीं ले सकता है, न ही किसानों के लिए ऐसी कोई शर्त रखी जाएगी. कृषि भूमि को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जोड़ने के बारे में सरकार ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था स्पष्ट है लेकिन जरूरत पड़ने पर इसे और स्पष्ट किया जा सकता है.

MSP पर किसानों की आशंका पर क्या बोली सरकार 

एमएसपी व्यवस्था को रद्द करने और व्यवसाय को निजी कंपनियों को देने की आशंका के बारे में सरकार ने कहा कि वह लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है कि वर्तमान एमएसपी व्यवस्था जारी रहेगी. प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को रद्द करने की मांग पर सरकार ने कहा कि किसानों के लिए वर्तमान में बिजली बिल भुगतान की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगा.

एनसीआर के वायु गुणवत्ता प्रबंधन अध्यादेश 2020 को रद्द करने की किसानों की मांग पर सरकार ने कहा कि वह उपयुक्त समाधान की तलाश करने के लिए तैयार है. मसौदा प्रस्ताव 13 कृषक संगठन नेताओं को भेजा गया है जिनमें बीकेयू (एकता उगराहां) के जोगिंदर सिंह उगराहां भी शामिल हैं. यह संगठन करीब 40 आंदोलनकारी संगठनों में से सबसे बड़े संगठनों में शामिल है.

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘किसान संगठनों को सरकार से मसौदा प्रस्ताव मिला है.’’ वह उन कई किसान नेताओं में शामिल हैं जो सरकार के साथ जारी वार्ता में शामिल हैं. सरकार ने दो नये कृषि कानूनों — कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 में सात संशोधन का प्रस्ताव दिया है.

किसान 14 दिसंबर को देशभर में करेंगे प्रदर्शन  

किसान नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में यहां कहा कि सरकार अगर दूसरा प्रस्ताव भेजे तो वे उन पर विचार कर सकते हैं. किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा कि अगर तीनों कानून रद्द नहीं किये गए तो एक के बाद एक दिल्ली की सड़कों को बंद किया जाएगा और किसान सिंघु बॉर्डर पार कर दिल्ली में प्रवेश करने के बारे में भी फैसला ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार से अगले दौर की वार्ता पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है.

कक्का ने कहा कि इन कानूनों के विरोध में किसान 14 दिसंबर को राज्यों में जिला मुख्यालयों का घेराव करेंगे और 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर राजमार्ग बंद किया जाएगा. किसान नेता दर्शन पाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 12 दिसंबर को आगरा-दिल्ली एक्सप्रेस-वे को बंद किया जाएगा और उस दिन देश के किसी भी टोल प्लाजा पर कोई कर नहीं दिया जाएगा. वहीं, किसान नेता प्रह्लाद सिंह भारुखेड़ा ने कहा कि सरकार के प्रस्ताव में कुछ भी नया नहीं है और हम कृषि-विपणन कानूनों के खिलाफ अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे.