देश के इस मंदिर में रहते हैं हजारों बंदर, जानें इसके पीछे की रहस्यमयी वजह
भारत में आपको ऐसे कई मंदिर (Temple) देखने को मिल जाएंगे, जो अपनी अनोखी परंपराओं के लिए जाने जाते हैं. क्योंकि भारत देश परंपराओं और रीति रिवाज का देश है. भारत देश अपनी धार्मिक संस्कृति के कारण विश्व में अधिक मशहूर है. आज हम आपको भारत के राज्य राजस्थान के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बातएंगे कि जो आज के समय में भी भारत की सांस्कृतिक विरासत को जोड़े हुए हैं.
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नवभारत टाइम्स के अनुसार, राजस्थान के जयपुर के रीगल शहर के बाहरी इलाकों में बना एक ऐसा मंदिर है, जिसका नाम ‘गलताजी मंदिर’ है. यह मंदिर अपनी कई मान्यताओं के लिए जाना जाता है. इस ऐतिहासिक मंदिर को अरावली की ऊंची पहाड़ियों पर बनाया है. इस लेख में हम आपको मंदिर की कुछ मजेदार बातों के बारे में बताएंगे. 18वीं शताब्दी में दीवान राव कृपाराम ने इस मंदिर की आधारशिला रखी थी. कृपाराम राजा सवाई जय सिंह के दरबार में दीवान थे.
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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह मंदिर अरावली पहाड़ियों में स्थित है और घने पेड़ों और झाड़ियों से घिरा है. कुंडों के अलावा मंदिर परिसर में भगवान कृष्ण, भगवान राम और भगवान हनुमान के मंदिर हैं. इस मंदिर में न केवल देशी बल्कि विदेश से भी भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं.
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भक्त गलताजी मंदिर समिति द्वारा आयोजित भक्ति कार्यक्रम लाइव प्रदर्शन, भक्ति संगीत और कई अन्य पवित्र कार्यक्रमों का भी आनंद लेने के लिए आते रहते हैं.
गलताजी को बंदर मंदिर क्यों कहा जाता है?
शहर के शोर शराबे से दूर यह मंदिर अरावली पहाड़ियों में स्थित है. मंदिर में हिंदू देवताओं, विवाह, और पौराणिक कथाओं के भित्तिचित्रों से सजाया गया है. इस मंदिर में आपको हजारों की संख्या में बंदर देखने को मिल जाएंगे. आपको दिलचस्प बात बता दें कि ये बंदर यहां आने वाले भक्तों को किसी भी तरह का नुकसान भी नहीं पहुंचाते. ये चंचल जंगली बंदर सुबह और शाम के समय मंदिर परिसर में और उसके आसपास देखन जा सकते हैं.
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गलताजी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय
मकर संक्रांति के आसपास लोग यहां के पवित्र कुंड में डुबकी लगाने के दूर-दूर से आते हैं. गलताजी मंदिर में जाने के लिए सूर्यास्त का समय सबसे बढ़िया है. क्योंकि इस समय बदंरों की संख्या भी कम होती है. इस मंदिर के दर्शन करने का सबसे अच्छे महीने जनवरी, फरवरी, अक्टूबर और दिसंबर है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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