सैलरी अकाउंट से कैसे अलग है सेविंग अकाउंट, जानें क्या है नियम
कंपनी में काम करने वाले व्यक्ति को सैलरी देने के लिए जिस बैंक अकाउंट को खोला जाता है उसे सैलरी अकाउंट कहा जाता है. ये अकाउंट कंपनी की ओर से खुलवाया जाता है. जिसमें कंपनी अपने कर्मचारी के अकाउंट में हर महीने भुगतान करता है. सैलरी अकाउंट में लागू होने वाले नियम सेविंग अकाउंट यानी बचत खाते से अलग होता है.
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सैलरी अकाउंट को कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए खोला जाता है. वहीं, सेविंग अकाउंट पैसे की बचत के लिए या बैंक में पैसे रखने के लिए खोला जाता है. सैलरी अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस की जरूरत नहीं होती है. वहीं, सेविंग अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस बनाए रखने की जरूरत होती है.
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हालांकि, सैलरी अकाउंट में तब न्यूनतम बैलेंस की जरूरत पड़ती है जब सैलरी अकाउंट में सैलरी आनी बंद हो जाती है. अगर आपने जॉब बदला है और सैलरी अकाउंट बंद नहीं करवाया है तो आपको खाते में मिनिमम यानी न्यूनतम बैलेंस रखना जरूरी होता है. ऐसा नहीं करने पर बैंक जुर्माना लगा सकती है.
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सैलरी अकाउंट में निश्चित समय में सैलरी नहीं डाली जा रही सामान्य तौर पर ये तीन महीने होते हैं, तो इस स्थिति में आपके सैलरी अकाउंट को रेगुलर सेविंग अकाउंट में बदल देगा.
हालांकि, सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट में ब्याज दर में कोई अंतर नहीं होता है. दोनों अकाउंट में ब्याज दर एक जैसे होते हैं. सेविंग अकाउंट को कोई भी व्यक्ति खोल सकता है लेकिन सैलरी अकाउंट कंपनी के द्वारा खोली जाती है.
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