नीम करौली बाबा अपने अनुयायियों के बीच महाराज जी के रूप में संबोधित किए जाते हैं. वह एक हिंदू गुरु थे, जोकि भगवान हनुमान के परम भक्त थे. उन्हें 1960 और 70 के दशक में भारत की यात्रा करने वाले कई अमेरिकियों ने अपना आध्यात्मिक गुरु माना. इन्हीं शिष्यों ने उन्हें विश्व विख्याति दिलाई. उनके शिष्यों में ‘राम दास’, ‘भगवान दास’, संगीतकार कृष्ण दास और ‘जय उत्तल’ शामिल हैं. उनके आश्रम नैनीताल के ‘कैंची’, ‘वृंदावन’, ‘ऋषिकेश’, ‘शिमला’, ‘फर्रुखाबाद’ में खिमासेपुर के पास नीम करौली गांव में, भूमिआधार, हनुमानगढ़ी और दिल्ली-मुंबई में स्थित हैं. 

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उनका असली नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था. उनका जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले के अकबरपुर गांव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 11 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करा दी थी. जिसके बाद उन्होंने एक साधु बनने के लिए उन्होंने घर छोड़ दिया. बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर एक व्यवस्थित विवाहित जीवन जीने के लिए घर लौट आए. उनके दो बेटे और एक बेटी है.

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नीम करौली बाबा का ट्रेन वाली कहानी

नीम करोली बाबा की ट्रेन वाली कहानी काफी लोकप्रिय है. आइए इसे जानते हैं. बाबा लक्ष्मण दास यानी नीम करौली बाबा ने 1958 में अपना घर छोड़ दिया था. उनके शिष्य ‘राम दास’ एक कहानी सुनाते हैं कि बाबा लक्ष्मण दास बिना टिकट ट्रेन में सवार हो गए थे. इसपर कंडक्टर ने ट्रेन को रोकने और नीम करौली बाबा को फर्रुखाबाद जिले (यूपी) के नीम करौली गांव में ट्रेन से उतरने को कहा. बाबा को ट्रेन से उतार देने के बाद कंडक्टर ने पाया कि ट्रेन फिर से शुरू नहीं हो रही थी. 

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ट्रेन शुरू करने के कई प्रयास हुए. फिर किसी ने कंडक्टर को सुझाव दिया कि वे साधु को वापस ट्रेन में चढ़ने दें. नीम करौली बाबा दो शर्तों पर ट्रेन में चढ़ने के लिए सहमत हुए. पहला कि रेलवे कंपनी को नीम करौली गांव में एक स्टेशन बनाने का वादा करना होगा क्योंकि उस समय ग्रामीणों को कई मील चलकर निकटतम स्टेशन तक जाना पड़ता था. और दूसरा कि रेलवे कंपनी को अब से साधुओं के साथ बेहतर व्यवहार करना होगा. 

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अधिकारियों ने जब सहमति जताई तो नीम करौली बाबा मज़ाक करते हुए ट्रेन में चढ़ गए कि मैं कौन होता हूं ट्रेन चलाने वाला. ट्रेन में बाबा के चढ़ते ही ट्रेन स्टार्ट हो गई, लेकिन ट्रेन चालक तब तक आगे नहीं बढ़े जब तक कि बाबा ने उन्हें आगे बढ़ने का आशीर्वाद नहीं दिया. बाबा ने आशीर्वाद दिया और ट्रेन आगे बढ़ी. बाद में नीम करौली गांव में एक रेलवे स्टेशन बनाया गया. बाबा कुछ समय तक नीम करौली गांव में रहे और यहीं से उन्हें नीम करौली बाबा के नाम से जाना जाने लगा. 

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