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2 years ago .New Delhi, Delhi, India

सूर्य ग्रहण: सूतक काल में भी इस एक मंदिर के खुले रहते हैं कपाट, जानें रहस्य

लोगों के आराध्य प्रत्यक्ष और चमत्कारी देवता भगवान श्री लक्ष्मीनाथजी का मंदिर ग्रहण लगने के बाद भी खुला रहता है. लेकिन ग्रहण के समय इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. वहां के लोगों के मुताबिक ये मंदिर बेहद चमत्कारी हैं. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.

Written by:Gautam Kumar
Published: October 25, 2022 10:42:38 New Delhi, Delhi, India

जहां सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) में भारत में सूतक काल (Sutak Kaal) में मंदिर (Temple) के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं. सूतक काल ग्रहण काल शुरू होने के 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है. जिसमें पूजा और पूजा वर्जित है. लेकिन फतेहपुर के भगवान सेठ श्री लक्ष्मीनाथ की भी सूतक काल में पूजा की जाती है. 25 अक्टूबर को विधिवत प्रातः आरती व भोग आरती होगी. जिसके बाद ग्रहण काल में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे. जो शाम 7.45 बजे खुलेगी और रात 8 बजे आरती होगी.

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क्यों खुला रहता है सूतक काल में लक्ष्मीनाथ मंदिर?

आज तक के अनुसार लक्ष्मीनाथ मंदिर के पुजारी रमेश भोजक ने बताया कि सालों पहले चंद्रग्रहण लगा था. मंदिर पंचायत के निर्णय पर सूतक के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे. पुजारी ने भगवान लक्ष्मीनाथ को भोग नहीं लगाया. जिसके बाद लक्ष्मीनाथजी महाराज ने रात में मंदिर के सामने हलवाई की दुकान पर बच्चे का रूप धारण कर लिया. उन्होंने कहा कि यहां प्रसाद मिल रहा है, मुझे भी भूख लग रही है. तुम पैजनी रखो, बदले में प्रसाद दो. जिसके बाद हलवाई ने पैजनी को प्रसाद दिया. सुबह जब मंदिर के पुजारियों ने देखा कि भगवान की पैजनी गायब है तो मामला मंदिर के पंचों और बाजार में फैल गया. जब हलवाई ने बताया कि एक बच्चा रात को मेरे पास पैजनी लेकर आया था. और बदले में उन्होंने प्रसाद लिया. तभी से सूतक काल में मंदिर में भोग और आरती होती है. ग्रहण के दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं.

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कार्तिक में लोग सुबह चार बजे से ही मंदिर के बाहर जमा होने लगते हैं. ताकि शाम 5.30 बजे आरती देख सकें. इस समय मंदिर कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं और पुरुषों से भरा रहता है. विशाल मंदिर में तिल रखने की जगह नहीं होती है. रात में भगवान के सोने के बाद कोई भी महिला, यहां तक कि एक छोटा बच्चा भी इस मंदिर में नहीं रह सकता है. चाहे वह पुजारी के परिवार से ही क्यों न हो. कार्तिक मास में दोनों समय 108 दीपों की आरती होती है. देव उठानी एकादशी को साल में केवल एक दिन ही पूरी रात मंदिर खुला रहता है और यहां भगवान और जागरण की पांच आरती होती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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