Muharram 2022: मुहर्रम कैसे मनाते हैं? जानें आशूरा का महत्व और इतिहास
मुहर्रम (Muharram) भारत में मुस्लिम (Muslim) समुदाय
द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है क्योंकि यह
इस्लामिक नए साल की शुरुआत का प्रतीक है. यह इस्लाम (Islam) कैलेंडर का पहला महीना है और
इस्लाम में एक साल में चार पवित्र महीनों में से दूसरा सबसे पवित्र महीना है,
पहला रमजान (Ramzan) है. मुहर्रम का जश्न इस्लामिक कैलेंडर के
आखिरी दिन अमावस्या को देखने के बाद शुरू होता है और दस दिनों तक चलता है. मुहर्रम
का 10वां दिन, जिसे आशूरा के दिन के रूप में जाना जाता है, विभिन्न मुस्लिम समूहों के लिए विभिन्न कारणों से सबसे अधिक महत्व रखता है.
2022 में मुहर्रम का 10वां दिन 9 अगस्त (मंगलवार) को है. इस दिन मुहर्रम
मनाया जाएगा.
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मुहर्रम क्यों मनाते हैं?
इस्लाम की मान्यता के अनुसार मुहर्रम
के 10वें दिन हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. इस दिन को
उनकी शहादत और बलिदान के रूप में याद किया जाता है. कहा जाता है कि इराक में यज़ीद
नाम का एक क्रूर बादशाह था, जो इंसानियत का
दुश्मन था. यज़ीद अल्लाह पर विश्वास नहीं करता था. यज़ीद चाहते थे कि हज़रत इमाम
हुसैन भी उनके खेमे में शामिल हो जाए.
हालांकि इमाम साहब को यह मंजूर नहीं था. उसने बादशाह यज़ीद के ख़िलाफ़ युद्ध की
घोषणा कर दी. इस लड़ाई में इमाम साहब अपने
बेटे, परिवार के सदस्यों और अन्य साथियों के साथ
शहीद हो गए थे.
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कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम के 10वें दिन यानि आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है. इराक में इमाम हुसैन की
एक दरगाह है, जिसकी हूबहू नक़ल पर ताजिया बनाई जाती
है. शिया उलेमा के अनुसार मुहर्रम को निकलने वाले चांद की पहली तारीख को ताजिया
रखी जाती है. इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया और जुलूस निकालते
हैं. हालांकि ताजिया निकालने की परंपरा केवल शिया समुदाय में ही निभाई जाती है.
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मुहर्रम पर ताजिया निकालने की वजह
दरअसल, इराक में इमाम हुसैन का रोजा-ए-मुबारक ( दरगाह ) है, जिसकी हुबहू कॉपी तैयार की जाती है, उसे ही ताजिया कहा जाता है. मुहर्रम के दिन इस्लाम के शिया समुदाय के लोग ताजिए निकालकर मातम मनाते हैं. ताजिओं के साथ निकलने वाले इस जुलूस में मुस्लिम धर्म के शिया समुदाय के लोग पूरे रास्ते भर मातम करते हैं और साथ में यह भी बोलते हैं, या हुसैन, हम न हुए. जिसका मतलब है कि कर्बला की जंग में हुसैन हम आपके साथ नहीं थे, वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए आपके साथ कुर्बान हो जाते.
जानें आशूरा का महत्व और इतिहास
आशूरा जिसका अरबी में शाब्दिक अर्थ है “दसवां”, मुहर्रम के दसवें दिन को संदर्भित करता है. मुहर्रम कर्बला की लड़ाई की सालगिरह का भी प्रतीक है, जहां इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन इब्न अली मारे गए थे. वे 10वें दिन आशुरा के नरसंहार को याद करते हैं, जिसमें कुछ लोग उपवास का चुनाव करते हैं.
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इस दिन मुसलमान हुसैन इब्न अली और उनके परिवार की शहादत पर शोक मनाते हैं. मुसलमान मुहर्रम की पहली रात से शोक करना शुरू कर देते हैं और दस रातों तक जारी रहते हैं, मुहर्रम की 10 तारीख को चरमोत्कर्ष, जिसे आशूरा के दिन के रूप में जाना जाता है. ये माह और मुहर्रम का त्यौहार सिया मुसलमानों के लिए अधिक महत्व वाला होता है.
इस समय शिया दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 15 प्रतिशत है.
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