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2 years ago .New Delhi, Delhi, India

क्यों रखती हैं सुहागिन स्त्रियां वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत, जानें

वट पूर्णिमा को मुख्य रूप से सुहागिनों का त्योहार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो महिला व्रत उपवास और बरगद की पूजा करती हैं.उसके पति को लंबी उम्र मिलती है और साथ ही पति का स्वास्थ्य ठीक रहता है.

Written by:Kaushik
Published: June 13, 2022 02:53:22 New Delhi, Delhi, India

हमारे देश में कई व्रत और त्योहार होते हैं.इन्हीं में से एक है वट पूर्णिमा. इसके अलावा वट सावित्रि का व्रत भी इसी तरह होता है. लेकिन दोनों दिनों की तिथि और महत्व अलग-अलग होते हैं. दरअसल यह व्रत ज्येष्ठ के महीने में दो बार यानी अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियों को पड़ता है और दोनों का ही अलग महत्व है. जिस प्रकार वट सावित्री अमावस्या में बरगद की पूजा और परिक्रमा की जाती है उसी तरह वट पूर्णिमा (Vat Purnima) तिथि के दिन भी बड़ी श्रद्धा भाव से पूजन करने का विधान है.

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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करने के लिए वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करती हैं.

herzindagi के लेख के अनुसार, वट पूर्णिमा को मुख्य रूप से सुहागिनों का त्योहार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो महिला व्रत उपवास और बरगद की पूजा करती हैं.

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उसके पति को लंबी उम्र मिलती है और साथ ही पति का स्वास्थ्य ठीक रहता है. साथ ही वट सावित्री का व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है और संतान प्राप्ति की इच्छा भी पूर्ण होती है.

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कब है वट पूर्णिमा का व्रत?

इस साल 2022 में वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 14 जून 2022, मंगलवार को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि आरंभ -13 जून, सोमवार को रात 9 बजकर 02 मिनट से है. पूर्णिमा तिथि समापन- 14 जून, मंगलवार को शाम 5 बजकर 21 मिनट पर है. उदया तिथि में व्रत रखने का विधान है इसलिए 14 जून के दिन ही पूजन शुभ होगा. पूजा का शुभ मुहूर्त – सुबह 14 जून 2022, मंगलवार प्रातः 11 बजे 12.15 के बीच है. इसी समय में बरगद के पेड़ की पूजा के लिए श्रेष्ठ समय रहेगा.

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वट पूर्णिमा पर कैसे पूजा करें?

पूर्णिमा वट सावित्री व्रत के नियम ठीक उसी प्रकार होते हैं जो वट सावित्री व्रत के नियम हैं. पूर्णिमा व्रत में प्रातः काल उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत होकर पूजन की सामग्री लेकर निकट के बरगद वृक्ष के पास जाएं. वहां विधि-विधान से पूजन करें और 108 बार परिक्रमा करें. इस दिन आप व्रत कथा भी सुनें और पूजा समाप्त होने पर दान जरूर करें.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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