केदारनाथ मन्दिर (Kedarnath Temple) भारत के उत्तराखण्ड (Uttarakhand ) राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है. यहां पर शिव जी की आराधना की जाती है. उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदानाथ में से भी एक है. मान्यता है कि केदारनाथ धाम के दर्शन करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस लेख में हम आपको बताएंगे केदरनाथ धाम से जुड़ी कु चौंकाने वाली बात के बारे में, जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे.

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ऐसा कहा है कि पांडवों ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण कराया था. वहीं पुराणों के मुताबिक यहां भगवान शिव भूमि में समाहित हो गए थे. केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है. स्कंद पुराण के मुताबिक केदारनाथ का भगवान शिव का चिर-परिचित आवास है और भू-स्वर्ग के समान है. वहीं केदारखंड में उल्लेख है कि बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है. तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है. केदारनाथ को जागृत महादेव के नाम से भी जाना जाता है.

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छह महीने तक मंदिर में नित्‍य जलता रहता है दीपक

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रत्येक साल भैया दूज पर केदारनाथ धाम के कपाट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं.

jagran.com के लेख के अनुसार, मंदिर के कपाट बंद के दौरान उसके आसपास कोई नहीं रहता है. मान्यता है कि शीतकाल के लिए कपाट बंद होने पर छह माह तक मंदिर में दीपक नित्‍य जलता रहता है. पुराणों के अनुसार केदार श्रृंग पर नारायण ऋषि और भगवान विष्णु के अवतार नर ने तपस्या की थी.

भगवान शंकर ने उनकी तपस्‍या से प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थनानुसार सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वर प्रदान किया था. यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है.

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बताया जाता है कि महाभारत में विजय हासिल करने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे. लेकिन भगवान उनसे नाराज थे. इसी वजह से भगवान शंकर ने अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ में चले गए. पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए. शिवजी ने भैंसे का रूप धारण कर अन्य पशुओं के बीच चले गए.

उस समय भीम ने भी विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए, जब सब पशु निकल गए. लेकिन शंकर जी रूपी भैंसे ने ऐसा नहीं किया. भीम बलपूर्वक इस भैंसे पर झपटे, लेकिन भैंसा भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा. भीम ने तब भैंसे की त्रिकोणात्मक पीठ का हिस्सा पकड़ लिया.

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पांडवों का दृढ संकल्प और भक्ति को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया.माना जाता है कि उसी समय से भगवान शिव भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ धाम में पूज्‍य हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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