इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है, जो 11 अप्रैल को खत्म हो रही है. ये नवरात्रि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है और नवमी तक चलती है. चैत्र नवरात्रि (Navratri) के दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में देवी भवानी की व‍िशेष कृपा पाने के ल‍िए पूजा-पाठ के न‍ियमों का पालन करने के साथ ही अगर दरबार भी वास्‍तु (Vastu) के अनुसार सजाए जाए तो देवी मां की व‍िशेष कृपा म‍िलती है.

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चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना या कलश स्थापना करते हैं. फिर मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप मां शैत्रपुत्री की पूजा करते हैं. आपको जानकारी के लिए बता दें कि आमतौर पर नवरात्रि की सामान्य अवधि 9 दिनों की होती है लेकिन कभी-कभी तिथियां बढ़ने पर नवरात्रि 10 दिनों की हो जाती है.इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि भारत के अलावा भी विदेशों में भी स्थित है शक्तिपीठ धाम. आइए बताते है विदेशों में बसे मां के शक्तिपीठ धाम के बारे में.

चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना या कलश स्थापना करते हैं.

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हिंगुला शक्तिपीठ, पाकिस्तान

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का सिर गिरा था. इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ को नानी का मंदिर या नानी का हज भी कहा जाता है. बता दें कि पिछले तीन दशकों में इस जगह ने अधिक लोकप्रियता पाई है और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है.

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मनसा शक्तिपीठ, तिब्बत

मनसा शक्तिपीठ तिब्बत में कैलाश मानसरोवर के तट पर स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती की दाईं हथेली गिरी थी.

नेपाल शक्तिपीठ

आद्या शक्तिपीठ: नेपाल में भी कई शक्तिपीठ मौजूद हैं. नेपाल में गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ है. ऐसा माना जाता है कि यहां माता सती का बायां गाल गिरा था. यहां माता देवी की गंडकी स्वरूप की पूजा होती है.

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गुहेश्वरी शक्तिपीठ: 52 शक्तिपीठों में से एक गुहेश्वरी शक्तिपीठ है. नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन से पहले माता गुह्येश्वरी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है.पहले गुह्येश्वरी मंदिर की पूजा की जाती है उसके उपरांत ही अन्य मंदिरों के दर्शन किए जाते हैं. यह मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर के कुछ दूरी पर बागमती नदी के किनारे स्थित है.

दंतकाली शक्तिपीठ: नेपाल के बिजयापुर गांव में माता सती के दांत गिरे थे. इस कारण इस शक्तिपीठ को दन्तकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है.

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इन्द्राक्षी शक्तिपीठ, श्रीलंका

श्रीलंका या इन्द्राक्षी शक्तिपीठ को हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. यह शक्तिपीठ श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर दूर नल्लूर में स्थित है. लंका या इन्द्राक्षी शक्तिपीठ प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है.मान्यता है कि देवराज इंद्र और भगवान राम ने माता के इस शक्तिपीठ की पूजा की थी. बांग्लादेश में शक्तिपीठ भवानीपुर गांव में स्थित है. नेपाल के बिजयापुर गांव में माता सती के दांत गिरे थे.

नेपाल के बिजयापुर गांव में माता सती के दांत गिरे थे.

अपर्णा शक्तिपीठ, बांग्लादेश

बांग्लादेश में शक्तिपीठ भवानीपुर गांव में स्थित है. यह शक्तिपीठ लगभग पांच एकड़ क्षेत्र में फैला है. यहां देवी के अपर्णा रूप की पूजा होती है. यहां दिन में तीन बार आरती की परपंरा है. इस स्थान पर माता सती के बाएं पैर की पायल गिरी थी. यहां माता को अर्पण और भैरव जी को वामन कहते हैं.

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उग्रतारा शक्तिपीठ: बांग्लादेश में कुल पांच शक्तिपीठ बांग्लादेश में सुनंदा नदी के तट पर उग्रतारा शक्तिपीठ स्थित हैं. मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की नाक गिरी थी.

श्रीशैल महालक्ष्मी: बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था.

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चट्टल भवानी: बांगलादेश में चिट्टागोंग जिले में सीता कुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल में माता का शक्तिपीठ है. यहां मां सती की दायीं भुजा गिरी थी.

जयंती शक्तिपीठ: बांग्लादेश के सिलहट जिले में ही जयंतिया परगना में खासी पर्वत पर जयंती माता मंदिर है. यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता की बाईं जांघ गिरी थी.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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