होली (Holi) के त्यौहार को लोग बहुत धूम-धाम के साथ मनाते है. होली का अधिकतर लोग बेसब्री से इंतजार करते है. होलिका दहन के अगले दिन रंग-अबीर वाली होली खेली जाती है. इस दिन खुशियां आती हैं और लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं. होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है. रंगों के इस उत्सव (Festival Of Colours) को उत्साह और प्रेम के साथ मनाया जाता है. होली में एक नया उत्साह हर किसी में देखने को मिलता है और बसंत ऋतु का आगमन भी यहीं से आता है, जिससे प्रकृति निखर जाती है.

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देशभर में होली अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है. कहीं फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं लट्ठ बरसाए जाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आग के जलते अंगारों से भी होली खेली जाती हो. देश में कई जगह पर ऐसे ही कुछ अनोखे अंदाज में होली मनाई जाती है. इस लेख में हम आपको बताएंगे कि देश के किस हिस्से में मनाई जाती है ऐसी अजीबोगरीब होली.

आग से होली खेलने का चलन: कर्नाटक के कई इलाकों में और मध्यप्रदेश के मालवा में होली के द‍िन एक-दूसरे पर जलते अंगारे फेंकने का चलन है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से होल‍िका राक्षसी मर जाती है.

कर्नाटक और मध्यप्रदेश होली के द‍िन एक-दूसरे पर जलते अंगारे फेंकने का चलन है.

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होली पर जीवनसाथी ढूंढना: होली के दिन मध्यप्रदेश के भील आद‍िवास‍ियों में जीवनसाथी से मिलने की परंपरा है. यह प्रथा आजाद ख्यालों से जुड़ी होने के साथ काफी मजेदार भी है. होली के दिन यहां पर एक बाजार लगाया जाता है. बाजार में लड़के और लड़कियां अपने लिए लाइफ पार्टनर तलाशने के लिए आते हैं. इसके बाद यहां पर आद‍िवासी लड़के वाद्ययंत्र बजाकर डांस करते है और इस दौरान अपनी मनपसंद लड़की को गुलाल लगा देते हैं. 

आपको जानकारी के लिए बता दें कि अगर लड़की को वो लड़का भी पसंद आ जाता है. तो लड़की भी उस लड़के को गुलाल लगाती है फिर दोनों की रजामंदी के बाद लड़का-लड़की को भगाकर ले जाता है और शादी करता है. 

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होलिका दहन की राख पर चलने के परंपरा: राजस्थान के बांसवाड़ा में आदिवासियों के बीच खेली जाने वाली होली में गुलाल के साथ होल‍िका दहन की राख पर भी चलने की परंपरा है. यहां के लोग होलिका दहन के अगले दिन होलिका की राख के अंदर दबी हुई आग पर चलते हैं और एक दूसरे पर पत्‍थर फेंककर खूनी होली खेलते हैं.

टोलियों में बटे हुए लोग कुछ दूरी पर खड़ हो जाते हैं और एक दूसरे पर पत्‍थरों की वर्षा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पत्‍थरों से चोट लगने और खून बहने का मतलब है आने वाला साल अच्छा रहने वाला है.

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दूसरपुर गांव में नहीं मनाई जाती होली: हरियाणा के कैथल ज‍िले के दूसरपुर गांव में वर्षों से होली नहीं मनाई जाती है. इसके पीछे एक बाबा का शाप है. गांव के लोग बताते हैं कि वर्षों पहले बाबा श्रीराम स्नेही दास ने एक गांव वाले की बातों से नाराज होकर होलिका दहन में कूदकर जान दे दी थी. जलते हुए बाबा ने गांव को श्राप द‍िया कि अब यहां कभी भी होली मनाई गई तो अपशगुन होगा.

 कैथल ज‍िले के दूसरपुर गांव में वर्षों से होली नहीं मनाई जाती है. 

इस डर से भयभीत गांव के लोगों ने सालों बीत जाने के बाद भी कभी होली नहीं मनाई. बता दें कि करीब 158 सालों से यह घटना नहीं हुई है. यह शाप आज भी कायम है.

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