भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आज 151वां जन्म उत्सव (Mahatma Gandhi Jayanti) मनाया जा रहा है. इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी बनाया जाता है. महात्मा गांधी ने विश्व को शांति का पाठ पढ़ाया और सत्य व अहिंसा की राह पर चलकर अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलाई. पर क्या आप जानते हैं कि शांति व अहिंसा के इस पुजारी को कभी शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया? जबकि गांधी के सिद्धांत ‘अहिंसा और सत्याग्रह’ का अनुकरण करने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर को सन 1964 और नेल्सन मंडेला को सन 1993 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया.

नोबेल पुरस्कार के लिए कई बार नामांकित हुए 

महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चार बार नामांकित किया गया. गांधी को लगातार तीन बार 1937, 1938 और 1939 में नामांकित किया गया था. इसके बाद देश की आजादी के वर्ष 1947 में भी उन्हें नामांकित किया गया था.

महात्मा गांधी को पहली बार नामांकित नॉर्वे के एक सांसद ने किया था, लेकिन उनको पुरस्कार के लिए नजरअंदाज कर दिया गया. महात्मा गांधी को चौथी बार  1948 में नामांकित किया गया लेकिन इसके दो दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई. 

पुरस्कार नहीं मिलने के कारण 

उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, नोबेल कमेटी के एक सलाहकार जैकब वारमुलर ने लिखा है कि महात्मा गांधी अहिंसा की अपनी नीति पर हमेशा कायम नहीं रहे और उन्हें इन बातों की कभी परवाह नहीं रही कि अंग्रेजों के खिलाफ उनका अहिंसक प्रदर्शन कभी भी हिंसक रूप ले सकता है.

जैकब वारमुलर ने लिखा है कि गांधी का आंदोलन सिर्फ भारतीय लोगों तक ही सीमित रहा. वारमुलर ने बताया कि अश्वेतों के लिए गांधी ने कुछ नहीं किया जो भारतीयों से भी बदतर स्थिति में थे. 

1947 में इसलिए सम्मानित नहीं किए गए महात्मा गांधी 

1947 में नोबेल पुरस्कार के लिए गांधी के साथ छह लोगों के नाम थे.लेकिन उस समय भारत विभाजन के बाद गांधी के कुछ विवादास्पद बयान आखबारों में छपे थे, यही कारण था कि वह नोबेल पुरस्कार से वंचित रह गए. तब यह पुरस्कार मानवाधिकार कार्यकर्ता क्वेकर को दे दिया गया था.

1948 में क्वेकर ने गांधी का नाम प्रस्तावित किया

1948 में महात्मा गांधी का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए क्वेकर ने नामांकित किया, लेकिन नामांकन की तारीख के सिर्फ दो दिन बाद गांधी की हत्या कर दी गई. गांधी इस वर्ष नोबेल जीतने के बेहद करीब थे. नोबेल कमिटी को गांधी के पक्ष में पांच संस्तुतियां मिली थीं. 

लेकिन तब समस्या यह थी कि उस समय तक मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था. कमेटी ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि अगर गांधी की 1948 में मौत नहीं होती तो इस साल का पुरस्कार उन्हें ही मिलता. कमिटी ने 1948 ये पुरस्कार ये कहते हुए किसी को नहीं दिया कि किसी भी जिन्दा उम्मीदवार को वह इस लायक नहीं समझती इसलिए इस साल का नोबेल इनाम किसी को भी नहीं दिया जाएगा.

महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद नोबेल कमेटी ने सार्वजनिक रूप कहा था कि नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची में गांधी का नाम ना होने से कमेटी दुखी है. यही कारण है कि वर्ष 1948 में नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी ने किसी को भी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया था. 

नोबेल पुरस्कार वेबसाइट मानती है कि 1948 में गांधी को सम्मानित करना संभव था. मुश्किल ये थी कि, ‘गांधी एक संगठन से संबंधित नहीं थे, उन्होंने कोई संपत्ति नहीं छोड़ी और कोई इच्छा नहीं थी, पुरस्कार राशि कौन प्राप्त करता?’

14वें दलाई लामा को 1989 में शांति का नोबेल पुरस्कार देते हुए कमिटी के चेयरमैन ने कहा था कि ‘ये महात्मा गांधी की याद में एक श्रद्धांजलि है’.