भारतीय रेलवे (Indian Railways) दुनिया का चौथा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो देश में 2,167 पैसेंजर ट्रेन हैं. वहीं, रोजाना 23 मिलियन यात्री ट्रेन के माध्यम से यात्रा करते हैं. अपने यहां कई तरह की ट्रेन और बोगियां हैं. अगर आपने कभी ट्रेन में सफर किया है तो जरूर देखा होगा कि ट्रेन में कई तरह की बोगियां होती हैं. इसमें एसी कोच, स्लीपर कोच और जनरल कोच शामिल हैं. ट्रेन में तीन रंग के डिब्बे भी देखने को मिलते हैं. एक डिब्बा लाल रंग का, तो वहीं दूसरा नीला और तीसरा हरे रंग का होता है. क्या आपने कभी ये सोचा है कि इन रंग का मतलब क्या है? चलिए आपको बताते हैं.

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लाल रंग के कोच का मतलब जानिए

लाल रंग के कोच को लिंक हॉफमैन बुश (LHB) कहा जाता है. ये कोच जर्मनी से साल 2000 में भारत लाए गए थे परंतु अब पंजाब के कपूरथला में बनते हैं. इनकी खासियत ये है कि ये एल्युमिनियम से बने होते हैं और दूसरे कोच की तुलना में हल्के होते हैं. साथ ही इसमें डिस्क ब्रेक भी दी जाती है. अपनी इसी खासियत की वजह से ये 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भाग सकते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें इनका इस्तेमाल तेज गति से चलने वाली ट्रेनों जैसे राजधानी और शताब्दी में किया जाता है. हालांकि, अब सभी ट्रेन में LHB कोच लगाने की योजना है. ऐसे में कई अन्य ट्रेनों में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है.

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जानिए नीले रंग के कोच का मतलब

बता दें कि नीले रंग के कोच को इंटीग्रल कोच कहते हैं. दरअसल ये कोच लोहे के बनते हैं और इनमें एयर ब्रेक का इस्तेमाल किया जाता है. इनका निर्माण चेन्नई में स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया जाता है लेकिन धीरे-धीरे अब इनके स्थान पर LHB का इस्तेमाल किया जा रहा है परंतु आज भी मेल एक्सप्रेस और इंटरसिटी जैसी ट्रेनों में ये कोच लगे मिल जाते हैं.

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जानिए हरे रंग के कोच का कोच का मतलब

हरे रंग के कोच का इस्तेमाल गरीब रथ ट्रेन में होता है. वहीं, भूरे रंग के डिब्बों का इस्तेमाल मीटर गेज ट्रेनों में होता है. बिलिमोरा वाघाई पैसेंजर एक नैरोगेज ट्रेन है, जिसमें हल्के हरे रंग के कोच को इस्तेमाल में लिया जाता है. हालांकि इसमें भूरे रंग के कोच का भी उपयोग किया जाता है.

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