मैरी रॉय (Mary Roy) एक टीचर और सामाजिक कार्यकर्ता थीं. बेटियों के लिए वह हमेशा से खड़ीं रही और बेटियों के हक के लिए उन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी. आपको बता दें, प्रसिद्ध लेखिका और मैन बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय (Arundhati Roy) मैरी रॉय की बेटी हैं. मैरी राय भी एक लेखिका, समाजसेविका के साथ ही कोट्टयम के पास पल्लीकूदम स्कूल की संस्थापिका भी थीं. दरअसल, मैरी रॉय केरल की एक सीरियाई ईसाई महिला थीं. उनके पिता पीवी इसहाक इंटोमोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने हेरोल्ड मैक्सवेल-लेफ्रॉय के तहत इंग्लैंड में प्रशिक्षण लिया था और पूसा में इंपीरियल इंटोमोलॉजिस्ट बन गए. मैरी राय बचपन से ही काफी जिद्दी स्वाभाव की थी. जिन्होंने किसी भी हाल जीत को हासिल करने के निर्णय को सच साबित कर दिखाया.

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संपत्ति में अधिकार पर केरल हाईकोर्ट का फैसला

मैरी रॉय ने अपने अधिकारों को पाने के लिए त्रावणकोर ईसाई उत्तराधिकार अधिनियम, 1916 की संवैधानिक वैधता को कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया था. इस लड़ाई में संपत्ति पर बेटी के समान अधिकार की बात करते हुए मैरी रॉय ने अनुच्छेद 14 का हवाला दिया. जिसे कोर्ट के द्वारा खारिज कर दिया गया था. इसके बाद भी मैरी का संघर्ष जारी रहा और उन्होंने आगे की लड़ाई लड़ने के लिए केरल हाईकोर्ट में अपील दायर की. लंबे समय तक चलने वाले इस मुकदमें में उस समय मोड़ आया, जब केरल हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए पिता की आधी संपत्ति का अधिकार उन्हें सौंप दिया.

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पिता की संपत्ति के अधिकार का एतिहासिक फैसला

मैरी राय के लंबों संघर्षों का परिणाम ऐतिहासिक फैसल बना, जी हां, क्योंकि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में बराबरी के अधिकार मिला था. इस फैसले के बाद त्रावणकोर सक्सेशन एक्ट में बदलाव किय गया. केरल हाईकोर्ट के फैसले के दायरे में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 कोचिन में रहने वाले ईसाई आए. वहीं इस फैसले के बाद बने नए नियम के तहत अब बच्चा वो चाहे लड़की यो या लड़का, जन्म से ही पिता की वसीयत का समान तौर पर वारिस रहेगा. अगर बिना वसीयत के पिता की मौत हो जाती है तो बेटी का भी भाई के समान संपत्ति पर बराबर हक होगा. यह जीत सिर्फ मैरी राय की जीत नहीं बल्कि देश की हर बेटी की जीत माना गया.