गुजरात का वडनगर, पीएम मोदी की जन्मभूमि भी और कर्मभूमि भी. कर्मभूमि इसलिए कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने कभी यहीं के रेलवे स्टेशन पर चाय बेची और यहीं की मिट्टी से संस्कार सीखकर वे प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे.

पीएम नरेंद्र मोदी का पैतृक घर, जहां उनका जन्म हुआ

ये वो गलियां हैं, जहां उनका बचपन गुजरा. इन्हीं रास्तों पर चलकर उन्होंने सपनों की उड़ान भरी और ये घर भी है,जहां उनका जन्म हुआ. इसकी चौखट और किवाड़ आज भी अपने सबसे खास अतिथि के स्वागत में खुलने को बेताब हैं. इसकी दीवारें और खिड़कियां आज भी अपने लाल के बीते बचपन की किलकारियां यादों में संजोए हैं. ये पुराना और जर्जर-सा दिखने वाला घर आज भी इस गली से गुजरने वालों को नरेंद्र मोदी के बचपन से मिलाता है.

पीएम मोदी का स्कूल

ये वो स्कूल है, जो अपने उस विद्यार्थी को याद करता है, जो पढ़ाई में बेशक औसत ही था, लेकिन किसने सोचा था कि वो दुनिया को ही जीवन का पाठ पढ़ा देगा.

नरेंद्र मोदी का वो बचपन, जहां सपने थे, संघर्ष भी. वडनगर स्टेशन के इस चाय स्टॉल को देखकर उस संघर्ष को समझा जा सकता है. पिता के साथ चाय बेचने वाला इसी टी स्टॉल से निकलकर पहले राजकोट और फिर दिल्ली तक जा पहुंचा.

पीएम मोदी के चाचा का घर

वैसे हम प्रधानमंत्री के परिवार के बारे में कुछ सोचते हैं तो दिमाग स्वत: ही एक इमेज बना लेता है, लेकिन ये मोदी का ही परिवार है, जो किसी खास इमेज के बंधनों से भी मुक्त-सा है. वडनगर में उनके चाचा-चाची का छोटा-सा मकान, दीवारों पर पूर्वजों की तस्वीरों के बीच से झांकती एक घड़ी और वहीं किचन में सजे गिलास और कटोरी. चाचा के बेटे अरविंदभाई नरसिंहदास मोदी अपने भाई PM नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की बधाई तो देते ही हैं साथ ही बड़े चाव से खुद में ही इतिहास समेटे उन तस्वीरों को भी दिखाते हैं, जो उन्हें एक पल के लिए सालों पीछे ले जाती हैं .

पीएम मोदी के दोस्त श्यामलदास माधवलाल मोदी

पीएम मोदी के दोस्त श्यामलदास माधवलाल मोदी से मिले तो भीनी मु्स्कान लिए वो बोले- हम दोनों साथ पढ़ते थे, तालाब में जाकर नहाना नरेंद्र को बहुत पसंद था. बोलते-बोलते फिर जोर देकर कहते हैं- अरे वो तो पहले से ही ऐसा है, जो मगज में आ जाता है, वो करके रहता है. कहता था कि मेरे आगे-पीछे गाड़ियां होंगी, देखो आज चल ही तो रही हैं.

बचपन की शरारत को याद करते हुए वे बोले- हम दोनों ने मिलकर मगरमच्छ पकड़ा था. जिसे डांट पड़ने के बाद वापस छोड़ दिया था. वो पतंग भी अच्छी उड़ाते थे, लट्टू भी अच्छा चलाते थे. सब काम बहुत अच्छे से करते थे.

वडनगर की शर्मिष्ठा झील

वैसे, वडनगर को सोलंकी शासकों के बनाए स्मारकों के लिए जाना जाता था. यहां टूरिस्ट आते तो थे, लेकिन बहुत कम, लेकिन जब नरेंद्र मोदी पीएम बने तो यहां आने वाले बढ़ने लगे. यहां पर सोलंकी काल का कीर्ति तोरन, शर्मिष्ठा झील समेत कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं. इसका संबंध 16वीं शताब्दी के भक्त कवि नरसिंह मेहता से हैं, जिनकी बेटी कुंवरबाई ने अपनी बेटी शर्मिष्ठा की शादी वडनगर में की थी. शर्मिष्ठा की दो बेटियां थीं, जिनका नाम ताना और रीरी. ताना-रिरी ने रागों में महारत हासिल की थी.

सोलंकी काल का कीर्ति तोरन

एक बार रीवा की रैली में पीएम मोदी ने ताना और रीरी का जिक्र किया था. पीएम मोदी ने कहा था कि ऐसा माना जाता है कि तानसेन ने अपनी जिंदगी का अच्छा खासा समय रीवा में गुजारा था. तानसेन की वजह से मेरा रीवा से संबंध है. एक बार उन्होंने राग दीपक गाया था. इस दौरान उनके सुर इतने तेज थे कि उससे न केवल दीपक जल गए, बल्कि उनके बदन के अंदर भी ज्वाला सुलग उठी. इस ज्वाला से तानसेन को काफी तकलीफ हो रही थी. बाद में किसी ने उन्हें वडनगर में रहने वाली दो लड़कियां ताना और रीरी के बारे में बताया. वडनगर में ही मेरा जन्म हुआ था. ये दोनों लड़कियां राग मल्हार गाने में माहिर थीं. तानसेन वहां गए और उन्होंने उन दोनों लड़कियों से राग मल्हार गवाया. इसके बाद बारिश होने लगी और इस बारिश से तानसेन के बदन की आग शांत हुई.’

पीएम मोदी के लिए वडनगर हमेशा से खास रहा. उन्होंने कहा था कि आज मैं जो कुछ भी हूं इसी मिट्टी के संस्कारों की वजह से हूं.

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