केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने शनिवार को कहा कि सरकार के साथ बातचीत का रास्ता बंद करने का सवाल ही पैदा नहीं होता. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिन हुई सर्वदलीय बैठक में कहा था कि किसान यूनियनों के साथ बातचीत के दौरान सरकार द्वारा की गई पेशकश अभी भी बरकरार है और उससे बस सम्पर्क करके बातचीत की जा सकती है. इस बयान के बाद ही शाम को संयुक्त किसान मोर्चा ने बातचीत का रास्ता बंद नहीं करने की बात कही है.

आंदोलन में शामिल किसान नेताओं ने महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ‘सद्भावना दिवस’ मनाया और दिल्ली की सीमाओं पर विभिन्न प्रदर्शन स्थलों पर पूरे दिन का उपवास रखा. मोर्चा के नेता दर्शन पाल द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘किसान अपनी निर्वाचित सरकार से बातचीत करने के लिए दिल्ली के दरवाजे तक चल कर आए हैं, इसलिए किसान संगठनों द्वारा सरकार से बातचीत का दरवाजा बंद किए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.’’ किसान संगठनों और केन्द्र सरकार के बीच अंतिम बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. मोर्चा ने अपने बयान में कहा है कि यूनियनें तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी देने की अपनी मांग जारी रखेंगी.

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मोर्चा ने किसान आंदोलन को ‘‘कमजोर और बर्बाद करने’’ के पुलिस के कथित प्रयासों की भी आलोचना की. पाल ने एक बयान में कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि पुलिस शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमलों को बढ़ावा दे रही है. पुलिस और भाजपा के गुंड़ों द्वारा लगातार की जा हिंसा सरकार के भीतर के डर को दिखाती है.’’

बयान में कहा गया है कि दिल्ली की सभी सीमाओं सहित पूरे देश में आज एक दिन का उपवास रखा गया. किसानों ने अपना आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से जारी रखने की शपथ ली. बयान के अनुसार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और अन्य राज्यों में भी किसानों के उपवास करने की सूचना है. वहीं बिहार में मुजफ्फरपुर और नालंदा जिलों सहित अन्य जिलों में सद्भावना दिवस पर मानव श्रृंखला बनायी गई.

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