भारत देश अपने समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक
इतिहास के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. यहां पर बहुत सारी खूबसूरत और आलीशान
इमारतें मौजूद हैं, जो कि अपने आप में इतिहास के अकल्पनीय पहलुओं को अपने आप में
समेटे हैं. हालांकि कई महलों और किलों को लेकर उनके इतिहास से जुड़ी कई तरह की
दिलचस्प बातें सुनने को जरूर मिलती हैं. एक ऐसा ही अद्वितीय और अनोखा स्मारक पुणे
में स्थित शनिवार वाड़ा है. यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां अक्सर कई तरह की असामान्य
गतिविधियां होती रहती हैं. वहीं यहां के स्थानीय इस किले के इतिहास के बारे में
तमाम तरह की बात बताने के साथ साथ कई तरह की आवाजों के आने की भी बात करते हैं.

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शनिवार वाड़ा की नींव और शासक

शनिवार वाड़ा के इतिहास की बात करें, तो इसकी
नींव पेशवा बाजी राव प्रथम के द्वारा 10 जनवरी,1730 को रखी गई थी. पेशवा बाजी राव
के बेटे पेशवा नानासाहेब के तीन बेटे थे माधवराव, विश्वासराव और नारायणराव पेशवा.
इतिहास की मानें, तो पानीपत की तीसरे युद्ध में पेशवा नानासाहेब और विश्वासराव की
जान चली जाने के बाद गद्दी पर बैठे माधवराव की भी मृत्यु हो गयी. दो भाइयों की मौत
के बाद माना जा रहा था कि यह गद्दी युवा राजकुमार नारायणराव को दी जाएगी. लेकिन उनकी
उम्र मात्र 16 साल होने के कारण यह जिम्मेदारी उनके चाचा रघुनाथ राव ने ले ली और
अपना शासन चलाना शुरू कर दिया.

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चीखें सुनाई देने का कारण

ऐसा कहा जाता है कि 1828 में किले में आग लग
गयी थी और यह आग पूरे एक हफ्ते तक जलती रही थी. जिसके चलते शनिवार वाड़ा एक खंडहर
हो गया. बताया जाता है कि युवा राजकुमार को उसका चाचा रघुनाथ पसंद नहीं करता था.
जिसकी वजह से उसने अपने भतीजे राजकुमार नारायणराव को मार डाला और उसके छोटे छोटे टुकड़े
कराकर नदी में फेंक दिया था. कई स्थानीय लोगों का मानना है कि वे कभी-कभी युवा
पेशवा की चीख काका माला वछवा (चाचा मुझे बचाओ) सुनते हैं.

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फिल्म की शूटिंग

कुछ समय पहले आई दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह और
प्रियंका चोपड़ा जैसे स्टार की प्रसिद्ध ब्लॉकबस्टर फिल्म बाजीराव मस्तानी एक
प्रसिद्ध पेशवा बाजीराव और उनकी दूसरी पत्नी मस्तानी के इतिहास पर आधारित फिल्म
थी. जिसकी शूटिंग इसी शनिवार वाड़े किले में कि गई थी. वहीं फिल्म आने के बाद से
यहां पर लोगों की आवाजाही बढ़ गई है.

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शनिवार वाड़ा की वर्तमान स्थिति

वर्तमान समय की बात करें तो शनिवार वाड़ा खंडहर
हो चुका है. जिसके पांच दरवाजे बचे हुए हैं.  जिन्हें
दिल्ली दरवाजा, खिडकी
दरवाजा, गणेश दरवाजा, नारायण दरवाजा और मस्तानी दरवाजा के
नाम से जाना जाता है. यहां के बारे में बताई जाने वाली असामान्य घटनाओं के चलते शाम
6:30 बजे के बाद किले में प्रवेश सख्त वर्जित है.