सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून (sedition law) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र से कहा कि यह एक औपनिवेशिक कानून (colonial law) है और इसका इस्तेमाल स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है? 

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमना ने राजद्रोह कानून पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई पार्टी दूसरे पक्ष की राय नहीं सुनना चाहती तो उनके खिलाफ आसानी से राजद्रोह कानून का इस्तेमाल करती है, इसकी कोई जवाबदेही नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “देशद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा किया गया था और स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया गया था. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है?”

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए जा सकते हैं.

पीठ पूर्व सेना अधिकारी मेजर-जनरल एसजी वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and expression) के मौलिक अधिकार पर रोक लगाता है. याचिका में दावा किया गया कि धारा 124-ए भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है जोकि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत प्रदान किया गया है. 

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बता दें कि इससे पहले मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैया लाल शुक्ला की ओर से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट से धारा 124-ए को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया था. इसपर इसी साल अप्रैल के अंत में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था. 

क्या है राजद्रोह कानून? 

IPC की धारा-124-ए में राजद्रोह की परिभाषा दी गई है. इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी बातों का समर्थन भी करता है, तो उसे उम्रकैद या तीन साल की सजा हो सकती है.  

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