सुप्रीम कोर्ट ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को कथित यौन उत्पीड़न और शीर्ष अदालत में पीठ ‘फिक्सिंग’ जैसे मामलों में फंसाने के ‘गहरे षड्यंत्र’ की स्वत: संज्ञान से शुरू की गई जांच प्रक्रिया बृहस्पतिवार को बंद करने का फैसला लिया. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि करीब दो साल गुजर गए हैं और जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड हासिल करने की संभावना बहुत कम है.

स्वत: संज्ञान से शुरू की गई जांच प्रक्रिया बंद करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ कथित यौन उत्पीड़न मामले की अंदरूनी जांच पहले ही पूरी की जा चुकी है और न्यायमूर्ति एसए बोबड़े (वर्तमान प्रधान न्यायाधीश) की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पैनल ने उन्हें दोष मुक्त करार दिया था.

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पीठ में न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) एके पटनायक पैनल षडयंत्र की जांच करने के लिए व्हाट्सऐप मैसेज जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्राप्त नहीं कर सका है इसलिए स्वत: संज्ञान से शुरू किए गए मामले से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

शीर्ष अदालत ने खुफिया ब्यूरो के निदेशक की चिट्ठी का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि चूंकि न्यायमूर्ति गोगोई ने असम में राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनआरसी) सहित अन्य कई मुश्किल फैसले सुनाए हैं, इसलिए संभवत: उन्हें फंसाने की साजिश की जा रही है.

न्यायमूर्ति पटनायक के हवाले से पीठ ने कहा कि यह मानने के ठोस कारण हैं कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश गोगोई को फंसाने की साजिश की गई होगी.

पीठ ने कहा कि 25 अप्रैल, 2019 के आदेशानुसार न्यायमूर्ति पटनायक पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि वह व्यावहारिकता में इसकी जांच नहीं कर सकता है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के न्यायिक फैसलों के कारण गोगोई के खिलाफ साजिश रची गई.

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