सुप्रीम कोर्ट (SC) ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट/धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तरह गिरफ्तारी करने के प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अधिकारों को सही ठहराया है. जस्टिस एएम खानविल्कर की अगुआई वाली तीन सदस्यों की बेंच ने कहा है कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है. सुनवाई करने वाली इस बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार भी शामिल थे.

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अपराधी की आय, तलाशी और उसे जब्त करने, गिरफ्तारी की शक्ति, संपत्ति कुर्क करना और जमानत की शर्तों के संबंध में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की कड़ी प्रक्रिया सही है. कार्ति चिंदबरम, अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत कुल 242 याचिकाओं पर यह फैसला आया. कोर्ट ने कहा कि PMLA के तहत गिरफ्तारी का ED का अधिकार बरकरार रहेगा. कोर्ट ने कहा कि ED द्वारा गिरफ्तार किए जाने की प्रक्रिया मनमानी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में ये भी स्पष्ट किया है कि ये ईडी के अधिकारियों के लिए अनिवार्य नहीं है कि वे मनी लॉन्ड्रिंग केस में किसी अभियुक्त को हिरासत में लिए जाने के समय गिरफ्तारी की वजह बताएं. 

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15 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उसका फैसला लगभग तैयार है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च को पीएमएलए के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. कार्ति चिदंबरम और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जैसे प्रमुख नाम मामले में याचिकाकर्ताओं में शामिल थे.

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बता दें कि कई याचिकाकर्ताओं ने ईडी के अधिकारों को चुनौती दी थी. इन याचिकाकर्ताओं में अन्य लोगों के अलावा पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती शामिल थीं.

धन शोधन निवारण अधिनियम को 2002 में अधिनियमित किया गया था और इसे 2005 में लागू किया गया. इस कानून का मुख्य उद्देश्य काले धन को सफेद में बदलने की प्रक्रिया (मनी लॉन्ड्रिंग) से लड़ना है.