Party Symbol Dispute: महाराष्ट्र में शिवसेना के दो खेमों में चुनाव चिन्ह को लेकर (Party Symbol Dispute) घमासान थम नहीं रहा. चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को असल शिवसेना मानते हुए पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है. लेकिन दूसरी ओर ठाकरे गुट ने इसका विरोध किया है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील किया है. अब ये लड़ाई कम थमेगी इसका पता नहीं है. लेकिन आपको बता दें कि, देश में राजनीतिक पार्टी में चुनाव चिन्ह को लेकर लड़ाई कोई नई नहीं है. इससे पहले भी देश में कई दिग्गज पार्टियों में चुनाव चिन्ह को लेकर घमासान हो चुका है. चलिए ऐसी 5 पार्टियों के बारे में बताते हैं.

कांग्रेस

देश की बड़ी पार्टी कांग्रेस में भी चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद हुआ था. जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने 1969 में कांग्रेस सिंडिकेट के खिलाफ विद्रोह करके पार्टी तोड़ दी और कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई, लेकिन चुनाव आयोग से उनके गुट को असली कांग्रेस नहीं माना गया और न ही ‘बैलों की जोड़ी’ का चुनाव निशान ही दिया गया. इसके बाद इंदिरा ने ‘गाय और बछड़ा’ को अपनी पार्टी का निशाना बनाया, लेकिन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद फिर उन्होंने नई पार्टी बनाई और उसका चुनाव निशान ‘हाथ’ रखा.

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तेलुगु देशम पार्टी

तेलुगु देशम पार्टी में भी चुनाव निशान को लेकर तकरार देखने को मिली. 1995 में जब एनटी रामाराव के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी में बगावत कर दी. नायडू के बगावत के बाद लक्ष्मी ने अलग पार्टी बना ली, लेकिन जीत चंद्रबाबू नायडू की हुई. उन्हें पार्टी और चुनाव निशान दोनों मिला. वे मुख्यमंत्री भी बने.

AIADMK

1986 में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद भी एआईएडीएमके में चुनाव निशान को लेकर विवाद हुआ था. जयललिता और रामचंद्रन की विधवा जानकी रामचंद्रन दोनों ने पार्टी पर अपना दावा ठोंका. जानकी 24 दिनों तक राज्य की मुख्यमंत्री भी बनीं, लेकिन पार्टी के ज्यादातर सांसदों और विधायकों का समर्थन जयललिता के साथ था, जिसके बाद उन्हें पार्टी का आधिकारिक चुनाव निशान आवंटित किया गया.

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समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी में भी जनवरी 2017 में चुनाव चिह्न को लेकर विवाद हुआ. पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने खुद को अपने बेटे अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले गुट की तरफ से अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद पार्टी के सिंबल पर अपना दावा ठोंका था. हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव के गुट वाली पार्टी को ही असली सपा माना और उसे साइकिल चुनाव निशान आवंटित किया.

लोक जनशक्ति पार्टी

लोक जनशक्ति पार्टी में भी चुनाव निशान की लड़ाई जारी है. चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2021 में पार्टी के ‘बंगला’ चुनाव निशान को फ्रीज कर दिया था. पार्टी जून 2021 में विभाजित हो गई थी. पार्टी पर दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस अपना दावा ठोंक रहे हैं.