देश की नदियों (river) का भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. पूरे भारत में नदी प्रणाली सिंचाई,सस्ते परिवहन, पीने योग्य पानी और बिजली के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोगों के लिए आजीविका प्रदान करती है. जानकारी के लिए बता दें कि प्राचीन समय में यातायात की सुविधा और व्यापारिक की वजह से अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे. तथा आज भी भारत के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से संबद्ध है. आज हम आपको एक ऐसी नदी के बारे में बताएंगे कि जो पानी के साथ उगलती है सोना है. आइए जानते है इसके बारे में.

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इस नदी का नाम स्वर्णरेखा है और यह राँची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित नगड़ी गाँव में रानी चुआं नामक स्थान से निकलती है. इसके अलावा यह नदी पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भी अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों वर्षों से बह रही है. नदी में पानी के साथ सोना बहने के कारण की वजह से इसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से जाना जाता है. इसके नाम के पीछे की भी वजह दिलचस्प है.

लोगों का मानना है कि यह स्वर्णरेखा नदी अपने साथ सोना लाती है. इसी वजह से इसका स्वर्णरेखा नदी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता यह कि झारखंड में कुछ जगहों पर स्थानीय आदिवासी स्वर्णरेखा नदी में से रेत छानकर सोने के कण एकत्रित करते हैं. इस कार्य में उनकी कई पीढ़ियां लगी हुई हैं. माड़ और सारंडा जैसे इलाके में बच्चे, महिलाएं, और पुरुष सुबह उठकर नदी से सोना इकट्ठा करने जाते हैं. आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि यह नदी कैसे और कब सोना लेकर आती है.

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मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार, इस बारे में रिसर्च चुके वैज्ञानिकों का कहना है कि ये नदी चट्टानों से होकर आगे की तरफ बढ़ती है और इस कारण से इसमें सोने के कण आ जाते हैं. हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है इस बात का पता आज तक नहीं लग सका है. इस नदी की कुल लंबाई 474 किलोमीटर है और लगभग 28928 वर्ग किलोमीटर का जल निकास इसके द्वारा होता है. इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ काँची एवं कर्कारी हैं. भारत का प्रसिद्ध एवं पहला लोहे तथा इस्पात का कारखाना इसके किनारे स्थापित हुआ था.

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