26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दौरान कई सैनिकों के साथ अलग-अलग तरह की चीजें याद बनकर बस गई हैं. इन सभी में शहीद वीर चक्र हवलदार मेजर यशवीर सिंह तोमर के बारे में आपको जरूर जानना चाहिए. हवलदार यशवीर सिंह तोमर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के एक राजपूत गांव सिरसाली के रहने वाले थे, जहां मृत्यु और हार से पहले गौरव और सम्मान आता है. तोमरों की सेना की सेवा करने की एक लंबी परंपरा रही है और उनकी परंपरा उन्हें हारे हुए युद्ध के मैदान से वापस आने की अनुमति नहीं देती है. उन्हें करना चाहिए या मरना चाहिए.

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हवलदार यशवीर सिंह तोमर गिरवार सिंह तोमर के सबसे बड़े पुत्र थे और उनके छोटे भाई, हरबीर सिंह भी दूसरी जाट बटालियन के साथ सेना में सेवारत थे. हवलदार यशवीर सिंह राजपूताना राइफल्स के थे और कारगिल युद्ध के दौरान 2 राज राइफल के साथ सेवारत थे.

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कारगिल युद्ध: तोलोलिंग की लड़ाई

तोलोलिंग, लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के एकदम करीब है. इसकी पोजिशन ऐसी है कि यहां से श्रीनगर-लेह हाइवे जिसे नेशनल हाइवे 1 के तौर पर जानते हैं, उसे साफ देखा जा सकता है. यह हाइवे लद्दाख को जम्मू कश्मीर और देश के दूसरे हिस्सों से जोड़ने वाला अहम रास्ता है. पाकिस्तान सेना, तोलोलिंग से इस हाइवे को लगातार निशाना बना रही थी. इस हाइवे पर हमला यानी युद्ध में जीत का तय होना.

तोलोलिंग पर कब्जा आसान नहीं था और कई दिनों तक इस पर कब्जे के लिए युद्ध चला. करगिल के द्रास सेक्टर में तैनात 18 ग्रेनिडयर्स को तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय तिरंगे फहराने का आदेश मिला था. तोलोलिंग पर कब्जा किए बिना दुश्मन को पीछे धकेलना आसान नहीं था. हजारों फीट की ऊंचाई पर बैठे घुसपैठियों को भगाने के लिए मेजर राजेश अधिकारी अपने जवानों को लेकर आगे बढ़े.

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कई असफल प्रयासों के बाद दूसरी राजपुताना राइफल्स की एक नई बटालियन को हमले के लिए लाया गया. ग्रेनेडियर्स ने पाकिस्तानी सैनिकों के पोजीशन के 300 मीटर नीचे, इस चोटी के 3 प्वाइंट्स पर मौजूद थे. इस बीच राजपूताना राइफल्स की तरफ से फायरिंग शुरू हुई. आखिरी हमले में मेजर विवेक गुप्ता शहीद हो गए थे. मेजर गुप्ता जिस टीम को लीड कर रहे थे कहते हैं उसमें 11 जवान ऐसे थे जिनका सरनेम तोमर था. हवलदार यशवीर सिंह उनमें से ही एक थे. हवलदार यशवीर सिंह तोमर के आखिरी शब्द थे, ‘साहब 11 तोमर जा रहे हैं और 11 जीतकर लौटेंगे.’

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12 जून 1999 की रात करीब ढाई बजे शून्य डिग्री तापमान में शहीद यशवीर सिंह 90 जवानों की अगुवाई करते हुए 16 हजार फुट ऊंची चोटी पर लगातार 48 घंटों से चढ़ाई कर रहे थे.चोटी पर बने बंकरों में छिपे दुश्मन पर जवानों की गोली का असर न होता देख उन्होंने सभी को फायरिंग बंद करने को कहा. सभी से हथगोले एकत्र किए.0बंकरों के निकट जाकर बंकरों पर गोले फेंकने शुरू कर दिए. गोलों के साथ ही दुश्मन भी फटते गए और चोटी पर तिरंगा फहरा दिया. उसी दौरान दूसरी चोटी के बंकर से दुश्मन ने तीन गोलियां दाग दी. अधिक रक्त बह जाने से वह शहीद हो गए.0राष्ट्रपति केआर नारायणन ने शहीद हवलदार मेजर यशवीर सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से अलंकृत किया.