नय्यारा नूर (Nayyara Noor) पाकिस्तान की पार्श्व गायिका थी, जिनका 71 साल की उम्र में निधन हो गया. पाकिस्तान में नय्यारा नूर की गनिती लोकप्रिय गायिका के रूप में की जाती है. वह 1971 से लेकर साल 2012 तक सक्रिय रहीं. लेकिन अब वह इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.

नय्यारा ने गायकी में अनुशासनबद्ध तरीके से कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं प्राप्त किया था. गायन के क्षेत्र में उनका आगमन महज इत्तेफाक था. 1968 में लाहौर के नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स में एनुअल इवेंट पर आयोजिक एक कार्यक्रम में वहां के प्रोफेसर इसरार ने इन्हें गाते सुना और रेडियो पाकिस्तान के कार्यक्रमों के लिए गाने का अनुरोध किया. इसके बाद से नय्यारा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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नय्यारा नूर का जन्म भारत में हुआ था. उनका जन्म 1950 में असम के गुवाहाटी में हुआ था. उनके पिता एक बिजनेस मैन थे. बिजनेस की वजह से वह परिवार के साथ अमृतसर से आकर असम में बस गए थे. वह ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य थे. उन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले पाकिस्तान के कायदे आज़म मुहम्मद अली जिन्ना के असम दौरों के दौरान मेजबानी की थी. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद 1957 में नय्यारा अपने भाई-बहनों और मां के साथ भारत से विस्थापित होकर पाकिस्तान के लाहौर में जाकर बस गईं. हालांकि उनके पिता अपने व्यवसाय और चल-अचल संपत्ति को संभालने के लिए 1993 तक भारत (असम) में रहे.

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रिपोर्ट के मुताबिक, 1971 में नय्यारा को पाकिस्तानी टेलिविजन पर पहली बार गाने का अवसर प्राप्त हुआ. इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘घराना’ (1973) और ‘तानसेन’ से पार्श्व गायन की शुरुआत की.नय्यारा अपने एकल गायन में मंच पर ऊर्दू के शायर गालिब और फैज अहमद फ़ैज़ ककी लिखी ग़ज़लों को अपना स्वर दे चुकी हैं. लेकिन गायकी में उन्हें ज्यादा प्रसिद्धी फ़ैज़ की ग़ज़लों से मिली. नय्यारा को उनके स्तरीय गायन के लिए पाकिस्तान में राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में तीन बार स्वर्ण पदक प्राप्त हो चुका है. इसके साथ ही उन्हें फिल्म घराना (1973) के लिए पाकिस्तान के निगार पुरस्कार से भी सम्मानित किया चुका है.