एक आदमी है. समृद्ध परिवार से नहीं आता. किसी तरह घर चलाने की कोशिश कर रहा है. जैसा भी छोटा-मोटा काम मिल जाए. उसकी हर भागदौड़ की साथी है उसकी साइकिल. चाहे जितनी भी खस्ता हो, लेकिन उसके काम कर देती है. एक दिन उसकी ये साइकिल उससे दूर हो जाती है. हतप्रभ सा वो अब क्या करे, यही समझने की कोशिश करता है.

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बहरहाल, हम ‘बाइसिकल थीव्स’ की बात नहीं कर रहे. शुरू में आपने जिस जीवन का वर्णन पढ़ा, वो मट्टो का जीवन है. एम गनी की फिल्म ‘मट्टो की साइकिल’ का नायक है मट्टो. ‘बाइसिकल थीव्स’ और ‘मट्टो की साइकिल’ में सिर्फ साइकिल शब्द ही एक समानता नहीं है. दोनों फिल्म के किरदारों के लिए साइकिल एक ज़रिया है. खुद की ज़िंदगी बेहतर करने का ज़रिया. अपने परिवार का ध्यान रखने का ज़रिया. हाल ही में ‘मट्टो की साइकिल’ का ट्रेलर रिलीज़ हुआ है.

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ट्रेलर के पहले शॉट में हर तरफ हरियाली दिखती है. हवा बह रही हैं. उन सब के बीच खड़ी है एक साइकिल. इस साइकिल पर एक बस्ता टंगा है. मट्टो खेतों के बीच खड़ी अपनी साइकिल की चेन चढ़ा रहा है. मट्टो का हर काम साइकिल से ही निकलता है. एक दिन एक ट्रैक्टर आकर उसी साइकिल को कुचलकर आगे बढ़ जाता है. ट्रैक्टर जो साइकिल से वज़नी है, बड़ा है.

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प्रतीकात्मक रूप से देखें तो समाज में ऊंचे तबके वाला खुद से नीचे तबके वाले को कुचलकर आगे बढ़ चला. इस क्लासिज़्म के निशान आपको ट्रेलर में और भी जगह दिखेंगे.

बता दें कि फिल्म ‘मट्टो की साइकिल’ को आप 16 सितंबर से सिनेमाघरों पर देख पाएंगे.