Maths Dyslexia: अक्सर हम देखते हैं कि कई बच्चे पढ़ाई में काफी कमजोर होते हैं. ऐसे में लोग बिना कारण जाने ही उन्हें लापरवाह सिद्ध कर देते हैं. कई बार ऐसा होता भी है, लेकिन कई बार बच्चे पढ़ाई तो करते हैं, उसके बावजूद भी वह चीज उनको समझ नहीं आती है. जी हां, कई मामलों में एक विशेष बीमारी (Maths Dyslexia) के चलते यह समस्या देखने को मिलती है.

जिसके फलस्वरूप चाहते हुए भी बच्चे चीजों को सामान्य बच्चों की तरह समझ नहीं पाते हैं और वह पिछड़ जाते हैं. इस खबर में हम खासतौर पर उन बच्चों की बात करने वाले हैं, जो मैथ्स में ज्याादा कमजोर होते हैं. इस बीमारी को मैथ्स डिस्लेक्सिया (Maths Dyslexia Or Dyscalculia) के नाम से जाना जाता है.

यह भी पढ़ें: Tomato Flu बच्चों को बना रहा अपना शिकार, जानें लक्षण और बचाव से लेकर सबकुछ

डिस्लेक्सिया क्या है? 

डिस्लेक्सिया एक प्रकार का विकार होता है. इसके चलते बच्चे को पढ़ने लिखने में दिक्कत महसूस होती है. वहीं मैथ्स डिस्लेक्सिया की बात करें, तो एक रिसर्च की मानें, तो यह समस्या जेनेटिकल होती है. इसके अलावा कई बार बच्चे मैथ्स विषय को कठिन मानकर दिलो दिमाग में ऐसा बैठा लेते हैं कि उनकी उस विषय से दूरी अपने आप बन जाती है. यह डर ही इस बीमारी को जन्म देता है और मैथ्स विषय समझने में तमाम तरह की मुश्किलें खड़ी करता है.

यह भी पढ़ें: Phone Addiction: फोन की लत आपके बच्चे को कर रही है बर्बाद, इन तरीकों से तुरंत छुड़ाएं ये आदत

इस समस्या से संबंधित लक्षण

जो भी बच्चें इस मैथ्स डिस्लेक्सिया की चपेट में आ जाते हैं, उन्हें मल्टीप्लिकेशन, फ्रेक्शन और डिवीजन जैसे कई छोटे सवालों को हल करने में भी काफी दिक्कत होती है. इसके साथ ही मैथ का विषय देखकर यह काफी भयभीत हो जाते हैं. इसके अलावा इस बीमारी से ग्रसित बच्चे अक्सर गिनतियों को लेकर भी बहुत कंफ्यूज रहते हैं. कई बार तो इन्हें नंबर पहचानने में भी बहुत दिक्कत सी महसूस होती है.

यह भी पढ़ें: बच्चे के दांतों के दर्द, कीड़े को खत्म करने के लिए आजमाएं ये घरेलू नुस्खें

इस समस्या का इलाज

यह बीमारी एक तरह से दिमाग से जुड़ी बीमारी है. वहीं अगर इसके इलाज की बात की जाए, तो फिलहाल अभी तक इसका कोई सटीक इलाज तो नहीं निकल पाया है. लेकिन विशेषज्ञों की मानें, तो इस बीमारी से पीड़ित बच्चों पर सामान्य बच्चों से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है और इन्हें ज्याादा से ज्याादा इस विषय से परिचित कराने पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि विषय को लेकर इनके डर को खत्म किया जा सके और यह इस विषय से फ्रेंडली हो सकें. इस तरह से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.

(नोटः ये जानकारी एक सामान्य सुझाव है. इसे किसी तरह के मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें. आप इसके लिए अपने डॉक्टरों से सलाह जरूर लें.)