भारत कृषि प्रधान देश हैं. यहां पर अधिकतर सभी तरह की खेती हैं.किसान अधिक मुनाफा कमाने के लिए कई तरह की खेती करते हैं. अगर फसल के दौरान गलत समय पर बारिश होने की वजह से फसलों को अधिक नुकसान होता हैं. बदलते समय के अनुसार किसानों में कृषि को लेकर जागरूकता बढ़ रही हैं. किसान नई फसलों की खेती की ओर बढ़ रहे हैं. भारत में कुछ ऐसे भी औषधीय पौधे हैं.जिनकी खेती किसान अगर करते हैं. तो एक एकड़ में 6 लाख रुपए तक की कमाई हो जाएगी. इसी तरह का एक पौधा है सतावर.

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सतावर का शाब्दिक अर्थ होता है सौ पत्ते वाला पौधा. इसको कई नामों से जाना पहचाना जाता हैं.जिनमें प्रमुख हैं-शतावरी, सतमूल, सतमूली और सतावर. यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होता हैं. इस पौधे के पत्तियों का अधिकतर प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है. नोकदार पत्तियों वाली इस लता को घरों तथा बगीचों में शोभा के लिए भी लगाया जाता है. जिससे अधिकांश लोग इसे अच्छी तरह पहचानते हैं. सतावर में कई शाखाएं होती हैं. यह कांटेदार लता के रूप में एक से दो मीटर तक लंबा होता है. इसकी जड़े गुच्छों की तरह होती हैं.

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सतावर की खेती भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया,अफ्रीका, बांग्लादेश, चीन और नेपाल अन्य देशो में भी की जाती है. इस पौधे का प्रयोग भूख बढ़ाने, चर्म रोग को सुधारने के लिए, पाचन शक्ति, पशुओ में दुग्ध को बढ़ाने के साथ-साथ कई तरह की बीमारियों दूर करने के लिए भी किया जाता है.जिस कारण सतावर के पौधों की अधिक मांग होती है.

सतावर की मई-जून के महीने में खेती होती हैं.इस पौधे की खेती के लिए नर्सरी तैयार की जाती है. नर्सरी तैयार करने के लिए खेत की अच्छे से जुताई करते हैं. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पहले की फसल के अवशेष खेत में न रह पाएं. खेत की तीन चार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना देते हैं. इसके बाद खेत में जैविक खाद डाल देते हैं. विशेषज्ञ अधिकतर इस सतावर की खेती के लिए जैविक खाद्य का प्रयोग करने की सलाह देते हैं. सतावर के पौधों की रोपाई के लिए खेत में मोटी नालियां बनाई जाती हैं. इस खेती के लिए खेतों में पानी निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. अन्यथा फसल के खराब होने की संभावना बनी रहती हैं. जिसके द्वारा खेत में आसानीपूर्वक पानी पहुंच जाए.

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आपको जानकारी के लिए बता दें कि सतावर के बीजों का अंकुरण 60 से 70 प्रतिशत होता है. करीब 12 किलोग्राम सतावर के बीज से एक हेक्टेयर खेत में रोपाई की जाती हैं. रोपाई के बाद तकरीबन 12 से 14 महीने बाद सतावर के पौधे की जड़ को परिपक्व होने में लगता है.

एक हेक्टेयर से औसतन 12 हजार से 14 हजार किलो ग्राम इस पौधे की ताजी जड़ प्राप्त की जा सकती है. इस सुखाने के बाद किसानों को एक हजार से 1200 किलो ग्राम जड़ मिल जाती है. जिसे बेचने पर किसान को एक एकड़ में 5 से 6 लाख रुपए तक का मुनाफा होता है.

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