Chhath Puja2022: हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का बहुत महत्व माना जाता है. लेकिन यदि बात उत्तर भारत के त्योहार की हो तो छठ पर्व (Chhath festival) का नाम सबसे पहले आता है.खासकर बिहार में छठ पूजा को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल ये पर्व 30 अक्टूबर 2022 को पड़ रहा है. छठ सिर्फ पर्व (Chhath Puja 2022 Date) नहीं बल्कि महापर्व होता है. जिस प्रकार दिवाली की धूम 5 दिन तक रहती है उसी प्रकार छठ पूजा का धूम 4 दिन तक रहती है. छठ की शुरुआत नहाए-खाए से होती है इसमें उगते और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. कहा जाता है कि छठ पर्व की शुरुआत सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी. हालांकि इसके पीछे कई और कथाएं भी प्रचलित हैं. आइए जानते हैं कि साल में दो बार मनाये जाने वाले इस पर्व की शुरुआत किसने की थी और क्या है इसकी मान्यता.

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सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी छठ पर्व की शुरुआत

धार्मिक मान्यता है कि, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. कहा जाता है कि इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था. क्योंकि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. माना जाता है कि सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने.

माता सीता ने की थी सूर्यदेव की पूजा

छठ पर्व की कथाओं में से एक कथा यह है कि जब श्री राम और माता सीता 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे. तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर उन्होंने राज सूर्य यज्ञ करने निर्णय किया. इस यज्ञ के लिए उन्होंने मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया. मुदगल ऋषि ने मां सीता को पवित्र करने के लिए उनपर गंगाजल डाला, और उन्हें कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. मां सीता ने मुद्गल ऋषि के आदेश का पालन करते हुए उन्ही के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की. और सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था.

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 द्रोपदी ने भी हारे हुए राजपाट की वापसी के लिए रखा था छठ व्रत

छठ पर्व के बारे में एक कथा और प्रचलित है कि, जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने दोबारा अपना राजपाट पाने की इच्छा से छठ व्रत रखा था. कहा जाता है कि व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया.

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छठ पर्व का पौराणिक महत्व

 पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा था जिसकी कोई संतान नहीं थी.संतान की चाह में राजा ने सभी उपाय कर डाले लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. तब राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया.यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ. राजा के मरे हुए बच्चे की खबर से पुरे राज्य में शोक छा गया. कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा. उसमें बैठी देवी ने कहा कि, मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं. इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा.तब से राजा ने अपने नगर में छठ पर्व मनाने की घोषणा कर दी.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)