‘सबका मालिक एक’ नाम से प्रसिद्ध साईं बाबा (Sai Baba) के भक्तों की गिनती नहीं है. साईं बाबा के भक्त उन्हें श्रधा भाव से पूजते हैं, और साईं उनकी मनोकामना को पूरी करते हैं. सबकी इच्छाओं को पूरी करने वाले साईं बाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को महाराष्ट्र (Maharashtra) के परभणी जिले के पाथरी गांव में हुआ था. साईं के पिता का नाम परशुराम भुसारी और माता का नाम अनुसूया था. साईं के माता-पिता को गोविंद भाऊ और देवकी अम्मा भी कहा जाता था. साईं की जन्म स्थली पर उनका एक मंदिर भी बना हुआ है जिसमें उनकी बेहद सुंदर मूर्ति रखी हुई है. मान्यता है कि 9 गुरुवार साईं का व्रत रखने से हर इच्छा पूरी हो जाती है. आज के दिन उनके भक्त साईं का जन्मदिन मनाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. जानें साईं से जुड़ी कुछ बातें 

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कैसे पंहुचे बाबा शिर्डी

बाबा घूमते-फिरते शिर्डी पंहुच गए. उस समय शिर्डी गांव में कुल 450 परिवार ही रहते थे. वहां पंहुच कर सबसे पहले बाबा ने खंडोबा मंदिर के दर्शन किए और फिर बैकुंशा के बताए नीम के पेड़ के पास गए. भिक्षा मांगने के बाद बाबा नीम्के पेड़ के पास बने चबूतरे के पास ही बैठ गए. तीन महीने तक बाबा शिर्डी में ही रहे और तीन महीने बाद बाबा शिर्डी से चले गए. वहां के लोगो ने बाबा को ढूंढा लेकिन बाबा नहीं मिले. और तीन साल के बाद बाबा पुनः शिर्डी पंहुच गए.

शिर्डी में साईं बाबा के गुरु ने जलाया था दीपक

वैन्कुंशा साईं बाबा के गुरु थे. वैन्कुंशा ने बाबा को बताया कि  80 साल पहले वो स्वामी समर्थ रामदास की चरण पादुका के दर्शन के लिए सज्जनगढ़ गए थे. वहां से वापस आते समय वो शिर्डी में रुके थे और वहां मस्जिद के पास एक नीम के पेड़ के नीचे  ध्यान किया. उसी वक्त उन्हें गुरु रामदास के दर्शन हुए थे. तभी उन्होंने वहां एक दीपक जलाया था. जो पेड़ के नीचे एक पत्थर के आड़ में रखा हुआ है.

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साईं बाबा पर लिखी तीन प्रमुख किताबें

1. श्री साईं सच्चरित्र

इस किताब के लेखक श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर थे. यह किताब मराठी भाषा में लिखी हुई है. इस किताब को साईं बाबा के जिन्दा रहते हुए ही लिख दिया गया था.

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2. ए यूनिक सेंट साईं बाबा ऑफ शिर्डी

इस किताब को विश्वास बालासाहेब खेर ने लिखा है. विश्वास ने यह किताब साईं के मित्र स्वामी साईं शरणआनंद की प्रेरणा से लिखी.

3.एक और किताब है जो कन्नड़ में लिखी गई है. इस किताब के नाम के जानकारी नहीं है. इसके लेखक श्री बीव्ही सत्यनारायण राव हैं. उन्होंने इस किताब को उनके नानानी से प्रेरित होकर लिखा था.

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3. साईं बाबा क्यों बांधते हैं माथे पर कपड़ा

कहा जाता है कि एक दिन बैंकुंशा और साईं जंगल से लौट रहे थे तब लोगों ने बाबा को ईट-पत्थर मारे. बाबा को बचाने के लिए बैंकुंशा बाबा के आगे आ गए और वो पत्थर उन्हें लग गए और उनके सिर से खून आने लगा. बाबा ने जिस कपड़े से बैंकुंशा के सर से खून साफ़ किया, तब उन्होंने साईं के सिर पर तीन लपेटे से वो कपड़ा बांध दिया. और कहा कि ये तीन लपेटे संसार से मुक्ति, ज्ञान, और सुरक्षा के हैं. तब से साईं बाबा अपने सिर पर कपड़ा लपेटते हैं.