स्वस्तिक
को ‘साथिया’ या ‘सतिया’ के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक ऋषियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के
आधार पर कुछ प्रतीकों की रचना की. स्वस्तिक इन्हीं संकेतों में से एक है, जो मंगल का प्रतिनिधित्व करता है और जीवन में
खुशियों को व्यक्त करता है. आज स्वस्तिक का प्रयोग हर धर्म और संस्कृति में
अलग-अलग तरीकों से किया जाता है.

यह भी पढ़ें: बेडरूम की दिशा और सजावट का रखें ध्यान, वरना पति-पत्नी के बीच हो सकती है तकरार

वास्तु
शास्त्र के अनुसार स्वस्तिक की चार दिशाएं होती हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण.
इसलिए हर हिंदू शुभ में इसकी पूजा की जाती है और इसी तरह हर धर्म में किसी न किसी
रूप में इसकी पूजा की जाती है.

लेकिन हिंदू
मान्यताओं के अनुसार, ये पंक्तियाँ चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं. कुछ का यह भी मानना है कि ये चार रेखाएं
ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा के चार सिरों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

यह भी पढ़ें: घर की इस दिशा में भूलकर भी न रखें ये चीजें, वरना आर्थिक तंगी के साथ बिगड़ेगी सेहत!

स्वस्तिक
का महत्व

हिंदू धर्म
में किसी भी बड़े या छोटे अनुष्ठान से पहले स्वस्तिक बनाना बहुत शुभ होता है. भारत
में किसी भी पूजा अनुष्ठान की शुरुआत में, चाहे वह विवाह हो या गृह प्रवेश, एक स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है और
इसे सौभाग्य लाने वाला माना जाता है.

हिंदू धर्म
में, स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना गया है. ऐसा माना जाता है कि स्वस्तिक से घर के वास्तु दोष ठीक हो जातें हैं. स्वस्तिक
में नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर भगाने की शक्ति होती है.

यह भी पढ़ें: घर में इन जगहों पर लगा दें मोरपंख, रातों-रात बदल जाएगी आपकी किस्मत!

स्वस्तिक
का प्रयोग करने के सही नियम क्या हैं
?

स्वस्तिक
की रेखाएं और कोण एकदम सही होने चाहिए. उल्टे स्वस्तिक को भूलकर भी ना बनाएं और ना
ही इस्तेमाल करें. लाल और पीले रंग का स्वस्तिक को उत्तम माना गया है. केवल तीन
रंगों का उपयोग किया जा सकता है – लाल, पीला और नीला. किसी अन्य रंग स्वास्तिक ना बनाए.

(नोट: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)