Sant Ravidas Jayanti 2023: संत रविदास को सतगुरु या जगतगुरु की उपाधि दी जाती है. रविदास निर्गुण संप्रदाय में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और प्रसिद्ध इंसान थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व करते थे. इस साल रविदास जयंती 5 फरवरी (Sant Ravidas Jayanti 2023) को मनाई जाएगी. संत रविदास के गुरु रामानंद ने भी उनकी प्रतिभा को देखकर ही उन्हें शिष्य बना लिया था. प्राचीन समय में छोटी जाति के लोगों पर बहुत अन्याय होते थे. कईं बार संत रविदास जी को भी इसका सामना करना पड़ा. इसलिए, उन्होंने अपना पूरा जीवन इस प्रथा को समाप्त करने में लगा दिया. चलिए हम आपको बताएंगे कौन थे संत रविदास? उनकी शिक्षा और दोहे अर्थ सहित के बारे में.

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कौन थे संत रविदास (Who was Sant Ravidas)

संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1398 को हुआ था. रविदास के पिता मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे. वे जूतों का व्यापार किया करते थे. बचपन में रविदास अधिक बहादुर और ईश्वर के भक्त थे. रविदास ने हमेशा लोगों को सिखाया कि अपने पड़ोसियों को बिना भेद-भेदभाव के प्यार करो. संत रविदास को पूरी दुनिया में सम्मान और प्यार दिया जाता है. लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेशष्ट्रा में अपने भक्ति आंदोलन और धार्मिक गीतों के लिये मिलता था.

संत रविदास की शिक्षा (Sant Ravidas Educaiton)

संत रविदास बचपन में अपने गुरु पंडित शारदा नंद के पाठशाला गये, जिनको बाद में दाखिला लेने के लिए कुछ उच्च जाति के लोगों के द्वारा रोका गया. पंडित शारदा ने यह महसूस किया कि रविदास कोई सामान्य बच्चा न होकर एक ईश्वर के जरिए भेजी गई संतान है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रविदास को पंडित शारदानंद ने अपनी पाठशाला में दाखिला दिया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रविदास को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां प्राप्त थी.

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संत रविदास के दोहे अर्थ सहित ( Sant Ravidas Ke Dohe)

1 . ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

किसी इंसान को केवल इसलिए नहीं पूजना चाहिए. क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. अगर उस इंसान में योग्य गुण नहीं होते हैं. तो उसको पूजना नहीं चाहिए. उसके स्थान पर यदि कोई और इंसान गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, चाहे वह कथित नीची जाति से हो.

2. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
हीरे से कीमती भगवान हैं. उसको छोड़कर बाकि चीजों की आशा करने वालों को जरूर नर्क जाना पड़ता है. अर्थात की भक्ति को छोडकर इधर उधर भटकना व्यर्थ है.

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3. जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
जिस संत रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी. जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था. तो ऐसे रविदास का भगवान की भक्ति में लीन हो जाना. ऐसा ही है जैसे इंसान के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो.

4. कर्म बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
इस दोहे का अर्थ यह है कि इंसान को हमेशा अपने कर्म लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए. क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है. तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.