Parshuram Dwadashi 2023 Date: संतान प्राप्ति की इच्छा हर किसी को होती है और इसके लिए लोग कई प्रयास भी करते हैं. मगर कुछ लोगों को इसका सुख नसीब नहीं होता है. हिंदू धर्म में कई व्रत-त्योहार ऐसे हैं जो करने से संतान प्राप्ति की उम्मीद को पूरा करते हैं और उनमें से एक है परशुराम द्वादशी. ऐसी मान्यता है कि इस दिन निसंतान दंपत्ति पूरे विधि विधान से पूजा और व्रत करते हैं तो उन्हें संतान का सुख बहुत जल्दी मिल जाता है. लेकिन सवाल ये है कि परशुराम द्वादशी या वैशाख माह की द्वादशी किस दिन पड़ रही है तो चलिए आपको इसका जवाब देते हैं.

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कब है परशुराम द्वादशी? (Parshuram Dwadashi 2023 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर परशुराम द्वादशी पड़ती है. इस साल 2 मई 2023 दिन मंगलवार के दिन परशुराम द्वादशी पड़ रही है. पुराणों के अनुसार, शास्त्र और शस्त्र विद्या में परांगत भगवान परशुराम का उद्देश्य प्राणियों का कल्याण करना तआ. परशुराम जी को लेकर शास्त्रों में लिखा है कि वह चिरंजीवी हैं और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक उनका वास धरती पर रहेगा. उनकी उपासना से दुखियों, शोषितों और पीड़ितों के दुख दूर होते हैं. परशुराम द्वादशी की शुरुआत 1 मई 2023 की रात 10.09 बजे से होगी जो 2 मई 2023 की रात 11.17 मिनट तक रहेगी. पूजा का शुभ मुहूर्त (Parshuram Dwadashi 2023 Shubh Muhurat) 2 मई की सुबह 8.59 बजे से लेकर दोपहर 12.18 बजे तक रहने वाला है.

परशुराम द्वादशी की पूजा विधि (Parshuram Dwadashi Puja Vidhi)

परशुराम द्वादशी के दिन सुबह के समय स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प जरूर लें. इसके बाद चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें. परशुराम जी का ध्यान करें और विष्णु जी को पीले फूल, पीले वस्त्र, मिठाई, भोग में तुलसी का पत्ता डालकर, धूप-दीप उन्हें अर्पित करें. परशुराम जी की कथा भी जरूर सुनें और उसके बाद ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात् मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. इससे आपको संतान की प्राप्ति हो जाएगी.

परशुराम द्वादशी का महत्व (Parshuram Dwadashi Importdance)

धार्मिक मान्यातओं के अनुसार, इस व्रत को करने वाले केको धार्मिक और बुद्धिजीवी होने का आशीर्वाद मिल जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम द्वादशी के दिन निसंतान दंपत्ति के लिए विशेष पूजा करने का शुभ दिन होता है. प्राचीन काल में ऋषि याज्ञवल्क्य ने एक राजा को संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का सुझाव दिया था. कई सालों के बाद उसे इस व्रत के करने से पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राजा नल बाद में पड़ा.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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