देव भूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड (Uttarakhand) विश्वभर में तीर्थ स्थलों के लिए प्रसिद्ध है. यहां की संस्कृति (Culture) में आपको कई विविधताएं देखने को मिलेगी जो कि लोगों को अपनी तरफ आ​कर्षित करती है. उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण त्योहार है और इनमें से एक है ‘हरेला’. 16 जुलाई को हरेला पर्व (Harela Festival) है. हरेला उत्तराखंड का लोक पर्व ही नहीं बल्कि हरियाली का प्रतीक भी है. हरेला पर्व का विशेष महत्व होता है.

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उत्तराखंड के लोगों के लिए हरेला पर्व बहुत खास होता है और यहां इस दिन से ही सावन की शुरुआत मानी जाती है और बाकि राज्यों में सावन के महीने की शुरुआत हो चुकी है. ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड में देवों के देव महादेव का वास है. इसी वजह से हरेला का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है.

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ऐसे मनाते हैं हरेला पर्व

इंडिया.कॉम न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, इस त्‍योहार के 9 दिन पहले ही 5 से 7 प्रकार के बीजों की बुआई की जाती है. इसमें उड़द, मक्‍का, भट्ट, गेहूं, सरसों और गेहूं शामिल होते हैं. इसे टोकरी में बोया जाता है. इसके 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है. इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है.

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प्रत्येक शाम को हरेला पर जल का छ‍िड़काव किया जाता है और 9वें दिन इन पौधों की हल्‍की गुड़ाई की जाती है. अलग-अलग हरेला के पास अलग-अलग प्रकार के फल रखे जाते हैं. इनके बीचों-बीच शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा स्‍थापित की जाती है. 10वें दिन हरेला त्योहार के दिन इसे काटा जाता है. घर के मुखिया इसकी पूजा करते हैं और इसे हरेला पतीसना कहा जाता है. घरों में खास तरह के पकवान बनाए जाते हैं. फिर यह देवता को अर्पित किया जाता है. इसके बाद घर के बड़े-बुजुर्ग सिर पर हरेला त‍िनकों को रखते हुए आशीर्वाद देते हैं.

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परिवार में एकता का संदेश है हरेला

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हरेला त्योहार परिवार को एकजुट करने का संदेश देता है. फैमिली के सभी लोग एक साथ मिलकर इस हरेला पर्व को मनाते हैं. हरेला त्योहार के अवसर पर हरियाली को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड में पौधरोपण अभ‍ियान भी चलाए जाते हैं.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.