Chaurchan Festiva 2022: भारत (India) में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का विशेष महत्व माना
जाता है. इसे लोग बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है गणेश
चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) से जुड़ा एक और त्योहार जिसमें चांद (Moon) की पूजा होती है और यह दोनों ही
त्योहार (Festival) एक ही दिन मनाए जाते हैं. आपको बता दें कि मिथिला (Mithila) में गणेश चतुर्थी के दिन
चौरचन पर्व (Chaurchan Festival) मनाए जाने का रिवाज है. इस दिन मिथिलावासी विधि-विधान के साथ चंद्रमा
की पूजा करते हैं. इस पर्व में महिलाएं पूरा दिन व्रत (Chaurchan vrat 2022) करती हैं औऱ शाम को गणपति (Ganesha Ji) की
पूजा के साथ अपना व्रत तोड़ती हैं. मिथिला के अधिकांश पर्व-त्योहार मुख्य तौर पर
प्रकृति (Nature) से ही जुड़े होते हैं, चाहे
वह छठ (Chath Puja) में सूर्य (Sun) की उपासना हो या चौरचन (Chaurchan Puja) में चांद की पूजा. मिथिला के लोग प्रकृति
पूजन पर ज्यादा विश्वास करते हैं.

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मिथिलावासियों के लिए यह दोनों पर्व बहुत
महत्वपूर्ण होते हैं और वह दोनों ही त्योहारों को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं. गणेश
चतुर्थी के दिन ही मनाए जाने वाले इस चौरचन पर्व को कई जगहों पर चौठचंद्र नाम से
भी जाना जाता है. इस त्योहार को मनाने के लिए मिथिलावासी बहुत उत्हासित रहते हैं. इस
दिन वह पूरे श्रद्धा भाव के और विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं. इसके
लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा
अर्चना करती हैं.

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कैसे मनाई जाती है चौठचंद्र?

इस दिन सूर्यास्त होने के बाद चंद्रमा के निकलते
ही घर के आंगन में सबसे पहले कच्चे चावल के आटे से एक रंगोली बनाई जाती है. उसके
बाद समस्त पूजा सामग्री को वहां पर व्यवस्थित ढंग से लगाने के बाद भगवान गणेश और
चांद की पूजा करने का विधान है. इस पूजा में कई तरह के खास पकवान व फल जैसे खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा
आदि चढ़ाया जाता है. इसके बाद घर की महिलाएं आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी
सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित करती हैं. इस दौरान वह कई तरह के मिथिला भाषी स्थानीय
गीत भी गाती जाती हैं.

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क्यों मनाई  जाती है चौठचंद्र?

प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन चांद को
शाप दिया गया था. तो ऐसे में इस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है. जानकारों
की मानें, तो उनका कहना है कि एक बार गणेश जी को देखकर चांद ने अपनी सुंदरता पर
घमंड करते हुए उनका उनका उपहास किया. जिसके चलते गणेश जी ने क्रोध में आकर चांद को
शाप दिया कि चांद को देखने से लोगों को समाज से कलंकित होना पड़ेगा. इस शाप से
चांद बहुत प्रभावित हुआ और उन्होंने इससे मुक्ति पाने के लिए चांद ने भाद्र मास,
जिसे
भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश जी की पूजा अर्चना की. तब जाकर गणेश जी ने
कहा, “जो आज की तिथि में मेरी पूजा के साथ चांद की
पूजा करेगा, वह कलंक का भागी नहीं बनेगा.” तब से यह
प्रथा चली आ रही है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.